दफ्तर से लेनी है छुट्टी | यश मालवीय
दफ्तर से लेनी है छुट्टी | यश मालवीय

दफ्तर से लेनी है छुट्टी | यश मालवीय

दफ्तर से लेनी है छुट्टी | यश मालवीय

दफ्तर से लेनी है छुट्टी
कुछ तो जी लें बिला वजह

सुबह देर से
सोकर जागें
सूरज के साथ
नहीं भागें
कोई अच्छी पुस्तक पढ़ लें
फाइल की भूलकर कलह

घड़ी-घड़ी
चाय पिएँ ताजी
सारा दिन
केवल गपबाजी
जमुहाएँ आलस में भरकर
बेमतलब की करें जिरह

मिले पुरानी
कोई चिट्ठी
मुन्ने की
मीठी सी मिट्ठी
नेह तुम्हारा क्षण-क्षण बरसे
सावन के मेघ की तरह

बिखराएँ
तिनकों पर तिनके
खुश हो लें
बार-बार बिन के
चादर से एक सूत खींचे
पास-पास लगाएँ गिरह

कुछ आड़ी तिरछी
रेखाएँ
कागज पर
खिंचाएँ-मिटाएँ
होठों से होठों पर लिख दें
फुर्सत है साँझ औ’ सुबह

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *