अनबीती सी
तिथियाँ होने दो
चोटों को
स्मृतियाँ होने दो
जख्म याद बन जाएँगे
तो नहीं पिराएँगे
आँखों के जल में ही
मन का दिया सिराएँगे
रचना की स्थितियाँ
होने दो।
एक मोड़ पर आकर
सारे कोण एक होंगे
खोलेंगे खिड़कियाँ
हमारे दर्द नेंक होंगे
रेखाएँ ज्यमितियाँ
होने दो।
एक-एक चेहरा
छवियों की छाँह छँहाएगा
यही हमारा कठिन
अकेलापन दह जाएगा
सुख सत्यापित प्रतियाँ
होने दो।
बहुत जरूरी है थोड़ा सा
समय स्वयं को देना
कभी न चुकने वाला
अक्षय धन अपने से लेना
क्रूर अथों की इतियाँ
होने दो।