स्वेतलाना अलेक्सियाविच लेखक और कहानीकार से पहले एक पत्रकार हैं। उन्होंने अपनी पत्रकारिता को साहित्य से कुछ ऐसा जोड़ा है जैसा लातिन अमेरिकी कथाकार गाब्रिएल गार्सिया मार्केस और लातिन अमेरिका के ही एक और बड़े लेखक पत्रकार एदुआर्दो गालियानो ने। उनका गद्य बेहद तीक्ष्ण लेकिन ठंडे निर्विकार अंदाज में चीजों और घटनाओं की पड़ताल करता है और उनके निष्कर्ष किसी लेखकीय चमत्कार से नहीं आते। वे उन वृतांतों , विवरणों , संस्मरणों और टिप्पणियों से सीधे आते हैं जिनके जरिए वे दर्द , यातना और शोषण का कथानक बुनती हैं। स्वेतलाना ने पत्रकारिता और साहित्य में अपना एक जॉनर विकसित किया है। मनुष्य तकलीफों की तफ्सील उन्हीं की जबानी। चेर्नोबिल की आवाजें इस विधा की एक अद्भुत मिसाल है। वहाँ नाटकीयता और संदर्भ नहीं हैं। वे आवाजें ही संदर्भ हैं। और एक भीषण पर्यावरणीय दुर्घटना का एक जीवंत और सबसे प्रामाणिक दस्तावेज दुनिया के सामने आ पाता है। चेर्नोबिल की याद आते ही हमारे सामने यानी इस भारतवर्ष और दक्षिण एशियाई जमात के सामने सहसा भोपाल गैस त्रासदी आ जाती है। 80 के दशक की ये दोनों बड़ी दुर्घटनाएँ चार साल के अंतराल में घटित हुई थीं। स्थानीय लोग और पूरा विश्व स्तब्ध रह गया था और लगने लगा था कि 20 वीं शताब्दी इन्हीं असामयिक , अचानक दुर्घटनाओं के हवाले होगी और 21 वीं सदी नए किस्म की और बड़ी दुर्घटनाओं का सामना करेगी। यही हो रहा है। (प्रस्तुति और अनुवाद – शिवप्रसाद जोशी)

26 अप्रैल, 1986 रात एक बजकर 23 मिनट 58 सेकंड। एक के बाद एक विस्फोटों ने उस इमारत में स्थित रिएक्टर को नष्ट कर दिया जहाँ चेर्नोबिल एटमी ऊर्जा स्टेशन का एनर्जी ब्लॉक 4 रखा हुआ था। चेर्नोबिल का विनाश बीसवीं सदी की सबसे बड़ी तकनीकी बरबादी साबित हुई। …छोटे से बेलारूस के लिए (आबादी : एक करोड़), ये एक राष्ट्रीय तबाही थी…। आज, हर पाँच में से एक बेलारूसी संक्रमित जमीन पर रहता है। और ये आँकड़ा बढ़कर बीस लाख लोगों का हो जाता है जिनमें से सात लाख बच्चे हैं। गोमेल और मोगीलेव इलाकों में जहाँ चेर्नोबिल का सबसे ज्यादा असर पड़ा और सबसे ज्यादा तबाही हुई, वहाँ मृत्यु दर, जन्म दर से बीस गुना अधिक है। – बेलारूस का इनसाइक्लोपीडिया, 1996, चेर्नोबिल, पेज 24

29 अप्रैल 1986 को रेडियोधर्मिता की जाँच करने वाले उपकरणों ने पोलेंड, जर्मनी, ऑस्ट्रिया और रोमानिया में उच्च स्तर का विकिरण दर्ज किया। 30 अप्रैल को स्विट्जरलैंड और उत्तरी इटली में। एक मई और दूसरी मई को फ्रांस, बेल्जियम, द नीदरलैंड्स, ब्रिटेन, और उत्तरी यूनान में। तीन मई को इजरायल, कुवैत और तुर्की में… हवा के साथ जहरीली गैस के कण पूरे भूमंडल का दौरा कर रहे थे : 2 मई को वे जापान में दर्ज किए गए। पाँच मई को भारत में, और पाँच और छह मई को अमेरिका और कनाडा में। – बेलारूस में चेर्नोबिल हादसे के नतीजे”, मिन्स्क स्थित द सखारोव इंटरनेशलन कॉलेज ऑन रेडियोइकॉलजी, मिन्स्क, 1992

ल्युजमिला इग्नातेंको, मृत दमकलकर्मी (फायरमैन) वासिली इग्नातेंको की पत्नी

हमारी नई नई शादी हुई थी। हम अभी भी हाथ में हाथ डालकर घूमते थे। स्टोर भी जाते तो एक दूसरे का हाथ थामकर। मैं उसे कहती, “तुम्हें प्यार करती हूँ।” लेकिन उस समय मैं नहीं जानती थी कि कितना। मुझे नहीं पता था… हम लोग उस फायर स्टेशन की डॉरमेटरी में रहते थे जहाँ वो काम करता था। मैं हमेशा जानती थी कि क्या हो रहा था – वो कहाँ है, वो कैसा है।

एक रात मैंने एक शोर सुना। मैंने खिड़की से बाहर देखा। उसने मुझे देखा, “खिड़की बंद कर दो और सो जाओ। रिएक्टर में आग लग गई है। मैं जल्द ही लौट आऊँगा।”

मैंने खुद विस्फोट नहीं देखा। सिर्फ लपटें। हर चीज रोशन हो गई थी। पूरा आकाश। एक ऊँची लपट। और धुआँ। गर्मी भयानक थी। और वो अभी तक नहीं लौटा था।

वे लोग जिस हालत में थे, अपनी पोशाकों में, वैसे ही चले गए थे। किसी ने उन्हें नहीं बताया था। उन्हें आग पर काबू पाने के लिए बुलाया गया था। बस इतना ही।

सुबह के सात बजे। सात बजे मुझे बताया गया कि वो अस्पताल में है। मैं वहाँ भागी। लेकिन पुलिस ने पहले ही घेरेबंदी कर दी थी। और वे किसी को जाने नहीं दे रहे थे। सिर्फ एंबुलेंस जा रही थीं। पुलिस वाले चिल्लाते थे : “एंबुलेंस रेडियोएक्टिव हैं, दूर रहो!” मैंने एक दोस्त की तलाश की, वो अस्पताल में डॉक्टर थी। जब वो एक एंबुलेंस से बाहर आई तो मैंने उसका सफेद कोट पकड़ लिया। “मुझे अंदर जाने दो!” “नहीं जाने दे सकती। उसकी हालत खराब है, सबकी हालत बुरी है।” मैं उससे लिपट गई। “सिर्फ उसे देखने के लिए!” “ठीक है,” उसने कहा। “मेरे साथ आओ, सिर्फ पंद्रह या बीस मिनट के लिए।”

मैंने उसे देखा। वो हर जगह से सूज गया था और फूला हुआ था। उसकी आँखें नहीं दिखती थी।

“उसे दूध की जरूरत है। बहुत ज्यादा दूध की,” मेरी दोस्त ने कहा। “उनमें से हरेक को कम से कम तीन लीटर दूध पीना चाहिए।”

“लेकिन उसे दूध अच्छा नहीं लगता है।”

“वो अब उसे पी लेगा।”

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(सारे मरीजों को मॉस्को शिफ्ट करने का पता चलने के बाद)

मैं छह महीने की गर्भवती थी। लेकिन मुझे मॉस्को पहुँचना था।

जो सबसे पहला पुलिस अधिकारी दिखा उसे हमने पूछा, चेर्नोबिल के अग्निशमन दल को को कहाँ रखा गया है। और उसने हमें बताया, ये सबके लिए आश्चर्य था, “अस्पताल संख्या 6, श्खूकिन्सकाया स्टॉप।”

ये रेडियोलॉजी के लिए एक विशेष अस्पताल था और बिना पास के आप अंदर नहीं जा सकते थे। मैंने दरवाजे पर खड़ी महिला को कुछ पैसे दिए, और उसने कहा : “जाओ।” फिर मुझे किसी और से पूछना पड़ा। मैं गिड़गिड़ाई। आखिरकार मैं हेड रेडियोलॉजिस्ट के दफ्तर तक पहुँच गई, आंजेलिना वासिलयेव्ना गुस्कोवा। उसने तपाक से यही पूछा : “क्या तुम्हारे बच्चे हैं?”

मैं उसे क्या बताऊँ? मैंने पहले ही भाँप लिया था कि मुझे ये छिपाना है कि मैं पेट से हूँ। वरना वे मुझे उससे मिलने नहीं देंगे! अच्छा है कि मैं पतली हूँ, आप मुझे देखकर कुछ नहीं बता सकते हैं। “हाँ,” मैंने कहा।

“कितने?”

मैं सोच रही हूँ, कि मुझे उसे बताना चाहिए – दो। अगर एक कहूँगी तो वो मुझे जाने नहीं देगी।

“एक लड़का और एक लड़की।”

“तो फिर तुम्हें और पैदा करने की जरूरत नहीं है। ठीक है। सुनो : “उसका केंद्रीय तंत्रिका तंत्र बेकार हो चुका है, उसकी खोपड़ी काम नहीं करती है।”

ओके, मैं सोच रही हूँ, वो थोड़ा बेकल और अधीर ही तो होगा। “और सुनो : अगर तुम रोने लगी, तो तुम्हें फौरन निकाल बाहर करूँगी। गले नहीं मिलना है और कोई चूमना वगैरा नहीं। उसके नजदीक जाने की कोशिश भी मत करना। तुम्हारे पास आधा घंटा है।”

लेकिन मैं पहले से जानती थी कि मैं उसे छोड़कर नही जा रही हूँ। अगर मैं जाऊँगी, तो उसे लेकर। मैंने खुद की कसम खाई।

मैं अंदर गई। वे सब बिस्तर पर बैठे हैं, ताश खेल रहे हैं और हँस रहे हैं। वास्या, उन्होंने आवाज दी। वो पलटा : “ओह, अच्छा, अब खेल खत्म हुआ। इसने तो मुझे यहाँ भी ढूँढ़ लिया।” वो इतना बेढंगा लगता है, 48 साइज वाला पैजामा, और उसका साइज 52 है। आस्तीन बहुत छोटे है, पैंट बहुत छोटी। लेकिन उसका चेहरा अब सूजा हुआ नहीं है। उन्हें कुछ खास तरह का द्रव दिया गया था।

मैंने कहा : “तुम भला कहाँ भागते?” वो मुझसे लिपटना चाहता है। डॉक्टर ऐसा नहीं करने देगी। “बैठो, बैठ जाओ,” वो कहती है, “यहाँ गले लगना मना है।”

हम किसी तरह मजाक करने लगे। और फिर सब वहीं जुट गए। उस जहाज में ये 28 लोग लाए गए थे।

मैं उसके साथ अकेला रहना चाहती थी, एक मिनट के लिए सही। उसके दोस्तों ने इस बात को महसूस कर लिया और बहाना कर हॉल से बाहर निकल गए। फिर मैंने उसे गले लगाया और उसे चूमा। वो अलग हट गया।

“मेरे नजदीक मत बैठे। कुर्सी ले लो।”

“ये बेवकूफी है”, मैने कहा।

अगले दिन मैं पहुँची तो वे अपने अपने कमरों में पड़े हुए थे। उन्हें हॉल के गलियारों में जाने से मना कर दिया गया था। एक दूसरे से बातचीत करने से भी मनाही हो गई थी। वे दीवारों पर दस्तक देते रहते थे अपनी अँगुलियों के पोरों से। ठक ठक ठक ठक। डॉक्टरों ने दीवारों का विकिरण भी नाप लिया था।

उसमें बदलाव आ रहा था – हर रोज मैं एक नए व्यक्ति से मिल रही थी। जलने की चोटें सतह पर आ रही थीं। उसके मुँह में, उसकी जीभ पर, उसके चेहरे पर – पहले पहल छोटे छोटे जख्म उभरे थे और फिर वे बढ़ने लगे। परतों में सब कुछ उधड़ने लगा… किसी सफेद फिल्म की तरह… उसके चेहरे का रंग… उसका शरीर… नीला… लाल… धूसर, भूरा। और ये सब भी मेरा ही था। इसका वर्णन करना असंभव है। इसे लिखना असंभव है। इससे निजात पाना तो और भी असंभव। जिस एक चीज ने मुझे बचाया वो ये थी कि ये सब कुछ बहुत तेजी से हुआ, सोचने का जरा भी वक्त नहीं था, रोने का भी वक्त नहीं था।

निवासियों का कोरस : वे जो लौट आए

ओह, मैं तो इस पर बात भी नहीं करना चाहती हूँ। वो एक डरावनी घटना थी। उन्होंने हमें निकाल बाहर किया। सैनिकों ने हमें खदेड़ा। सेना की बड़ी मशीनें अंदर घुस आईं। एक बूढ़ा आदमी – पहले ही मैदान पर जा गिरा था। मरता हुआ। वो आखिर कहाँ जाना चाह रहा था? “मै उठ जाऊँगा,” वो रो रहा था, “और कब्रिस्तान तक खुद जाऊँगा। मैं ये काम अपने आप करूँगा।”

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हम जा रहे थे – मैंने अपनी माँ की कब्र से कुछ मिट्टी उठा ली, एक छोटे से झोले में रख ली। घुटनों पर बैठ गई और कहा : “हमें माफ कर दो माँ, तुम्हें छोड़ कर जा रहे हैं।” मैं रात में वहाँ पहुँची और मैं डरी हुई नहीं थी। लोग घरों पर अपने नाम लिख रहे थे। लकड़ी पर, फेंस पर, डामर पर। मैंने घर धुला, चूल्हे को ब्लीच किया। टेबल पर कुछ डबलरोटियाँ और कुछ नमक, एक छोटी प्लेट और तीन चम्मच रख देने चाहिए। उतने चम्मच जितनी आत्माएँ हैं इस घर में। और हो सकता है हम लौट आएँ।

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मुर्गे मुर्गियों की कलगियाँ काली पड़ गई थीं, वे अब लाल नहीं रह गई थीं, विकिरण की वजह से। और आप चीज नहीं बना सकते थे। हम लोग एक महीना चीज और कॉटेज चीज के बगैर रहे। दूध खट्टा नहीं हो गया था – वो फटकर पाउडर बन गया था, सफेद पाउडर। विकिरण की वजह से।

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पुलिस वाले चिल्ला रहे थे। वे कारों में भरकर आए और हम जंगलों की ओर भाग गए। जैसे जर्मनों से भागे होंगे। एक बार वो वकील को ले आए, वो हाँफा, चीखा, हमें धारा 10 के तहत जेल में डालने की धमकी मिली। मैंने कहा : “ठीक है मुझे एक साल जेल में रख दो। मैं सजा काटकर लौटूँगा, यहीं लौटूँगा।” उनका काम है चिल्लाना, हमारा काम है खामोश रहना। मेरे पास मेडल है – मैं इलाके का सबसे अच्छा किसान था। और वो मुझे धारा 10 के नाम पर डरा रहा है।

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इस एक रिपोर्टर ने कहा कि हम लोग महज अपने घरों को नहीं लौट रहे थे, हम सौ साल पीछे लौट चुके थे। हम कटाई के लिए एक हथौड़े और कटाई के लिए एक हँसिया का इस्तेमाल करते हैं। हम गेंहू की बालियों को ठीक डामर के ऊपर पीटते हैं।

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हमने फौरन रेडियो बंद कर दिया। हम किसी समाचार के बारे में नहीं जानते लेकिन जिंदगी शांतिपूर्ण है। हम लोग नाराज नहीं होते हैं। लोग आते हैं, वे हमें कहानियाँ सुनाते हैं – हर जगह युद्ध है। और कहते हैं कि समाजवाद खत्म हो गया है और हम पूँजीवाद के साए में रह रहे हैं। और जार लौट रहा है। क्या ये सच है?

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लोग अंडे ले जाते हैं, रोल ले जाते हैं और जो कुछ भी उनके पास होता है उसे लेकर क्रबिस्तान पहुँचते हैं। हर कोई अपने परिवार के साथ बैठता है। वे उन्हें बुलाते हैं : “बहन, मैं तुम्हें मिलने आया हूँ। आओ लंच करते हैं।” या “माँ, प्यारी माँ। पापा, प्यारे पापा।” वे दूर स्वर्ग से आत्माओं को बुलाते हैं। जिनके लोग इस साल मरे, वे रोते हैं, और जिनके लोग पहले मर गए वे नहीं रोते हैं। वे बाते करते हैं। याद करते हैं। हर कोई प्रार्थना करता है। और जो नहीं जानता है कि प्रार्थना कैसे की जाती है वो भी प्रार्थना करता है।

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हमारे पास यहाँ हर चीज है – कब्र। हर कहीं कब्रें। डंप करने वाले ट्रक काम पर लगे हैं और बुलडोजर भी। मकान गिराए जा रहे हैं। कब्र खोदने वाले मशक्कत कर रहे हैं। उन्होंने स्कूल को दफनाया, मुख्यालय को और स्नानघरों को। ये वही दुनिया है, लेकिन लोग अलग हैं। एक चीज जो मुझे समझ नहीं आती कि क्या लोगों में आत्मा का वास होता है? आत्मा किस तरह की होती है? मेरे दादा दो दिन में मरे। मैं चूल्हे के पीछे छिपा था और इंतजार कर रहा था : वो उसके शरीर से कैसे उड़ कर जाएगी? मैं गाय दुहने चला गया था – मैं लौटा और दादा को आवाज दी। वो वहाँ पड़े थे, उनकी आँखें खुली हुई थीं। उनकी आत्मा पहले ही उड़ गई थी। या ऐसा कुछ हुआ ही नहीं था। और फिर मैं उनसे कैसे मिलूँगा?

सैनिकों का कोरस

हमारी रेजिमेंट को ताकीद कर दी गई थी। हम लोग जब मॉस्को में बेलोरुस्काया ट्रेन स्टेशन पहुँच गए तब जाकर हमें बताया गया कि हम जा कहाँ रहे हैं। एक फौजी, वो शायद लेनिनग्राद का था, उसने विरोध करना शुरू कर दिया। उसे बताया गया कि उसे सैन्य ट्रिब्यूनल के सामने पेश कर दिया जाएगा। कमांडर ने टुकड़ी के सामने ठीक यही बात कही थी : “तुम्हें जेल में ठूँस दिया जाएगा या गोली मार दी जाएगी।” मेरे मन में अलग ही भावनाएँ थी, उस फौजी से बिल्कुल उलट। मैं कुछ हीरो जैसा करना चाहता था। हो सकता है ये बच्चों का मामला हो। लेकिन मेरे जैसे और भी लोग थे। डर तो था लेकिन मजेदार भी था, किसी वजह से।

तो हमें पहुँचा दिया गया। हमें सीधे पावर स्टेशन ले जाया गया। हमें सफेद लबादे और सफेद टोपियाँ दे दी गईं। गेज सर्जिकल मास्क भी। हमने इलाके की सफाई कर दी। रोबोट ये नहीं कर सकते थे, उनके सिस्टम बैठ गए थे। लेकिन हमने काम किया। और हमें इस बात का गर्व था।

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ये रहा वो छोड़ा हुआ मकान। ये बंद है। खिड़की की सिल पर एक बिल्ली है। मैं सोचता हूँ : जरूर मिट्टी की बिल्ली होगी। मैं आगे जाता हूँ और ये तो असली बिल्ली है। उसने घर में रखे सारे फूल खा लिए हैं। जिरेनियम के फूल। वो अंदर कैसे आई? या घर के लोगों ने ही उसे यहाँ छोड़ दिया था?

दरवाजे पर एक नोट चिपका हुआ है : प्रिय दयालु व्यक्ति, यहाँ किसी कीमती चीज की खोजबीन न करना। हमारे पास ऐसी कोई चीज कभी नहीं थी। जो चाहे वो इस्तेमाल कर लेना, लेकिन जगह को गंदा मत करना। हम लौटकर आएँगे। मैंने अन्य मकानों में अलग अलग रंगों के निशान देखे थे – प्यारे घर, हमें माफ कर दो! लोग अपने घरों को ऐसे अलविदा कह रहे थे जैसे कि वे भी लोग हों। या उन्होंने लिखा था : हम लोग सुबह निकल रहे हैं या हम लोग रात में निकल रहे हैं। और उन्होंने तारीखें भी लिख दी थीं और समय भी। स्कूल की कॉपियों के पन्नों पर नोट लिखे हुए थे : बिल्ली को मारना मत। वरना चूहे सब कुछ खा जाएँगे। और फिर एक बच्चे की राइटिंग में लिखा था : हमारी जुल्का को मत मार देना। वो एक अच्छी बिल्ली है।

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हम घर लौटे। मैंने अपने सारे कपड़े उतारे और उन्हें नष्ट करने के लिए ट्रैश शूट में डाल दिया। अपनी कैप मैंने छोटे बेटे को दे दी। वो वाकई उसे चाहता था। और वो हर वक्त उसे पहने रहता था। दो साल बाद उसकी बीमारी की पहचान की गई : उसके दिमाग में ट्युमर हो गया था… इसके बाद की बातें आप खुद ही लिख लीजिए। मैं और बात नहीं करना चाहता हूँ।

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हम लोग घटनास्थल पर पहुँचे। अपने उपकरण उठाए। “सिर्फ एक हादसा,” कप्तान ने हमें कहा। “बहुत समय पहले हो चुकी है ये दुर्घटना, तीन महीने हो गए। अब कोई खतरे वाली बात नहीं है।” “ठीक है सब, कोई दिक्कत नहीं,” सार्जेंट ने कहा, “बस खाने से पहले अपने हाथ जरूर धुल लेना।”

मैं घर लौटा। मैं डांस करने जाऊँगा। मैं अपनी पसंद की लड़की से मिलूँगा और कहूँगा, “चलो एक दूसरे को बेहतर ढंग से जान लें।”

“आखिर क्यों, किसलिए? तुम अब एक चेर्नोबिलाइट हो। मुझे तुम्हारे बच्चे पैदा करने में डर लगता है,” वह कहेगी।

मरात फिलिपोविच कोखानोव बेलारूस एकेडमी ऑफ सांइसेस में एटमी ऊर्जा संस्थान के पूर्व मुख्य अभियंता

मई के आखिर में, हादसे के करीब एक महीने बाद, हमें तीस किलोमीटर के दायरे से परीक्षण और जाँच के लिए संक्रमित चीजें भेजी जाने लगीं। हमें पालतू और गैरपालतू जानवरों के शरीरों के हिस्से भेजे गए। पहले परीक्षणों से ही साफ हो गया कि हमारे पास जो आ रहा है वो मीट नहीं है बल्कि रेडियोएक्टिव उपोत्पाद यानी बायप्रॉडक्ट है। हमने दूध का परीक्षण किया, वो दूध नहीं था। वो एक रेडियोधर्मी बायप्रॉडक्ट था।

कुछ गाँवों में हमने वयस्कों और बच्चों में थायरॉयड की माप की। ये निर्धारित डोज से सौ, कभी कभी दो सौ और तीन सौ गुना अधिक थी। ट्रैक्टर चल रहे थे, किसान अपनी जमीनों को खोद रहे थे। बच्चे रेत के बक्सों पर बैठे और खेल रहे थे। हमने एक औरत को देखा जो अपने घर के पास एक बेंच पर बैठी थी, अपने बच्चे को दूध पिलाती हुई – उसके दूध में सीजियम था – वो चेर्नोबिल की मेडोना है।

हमने अपने बॉसों को पूछा : “हम क्या करें? कैसे काम करें?” उन्होंने कहा : “अपने माप लो, टीवी देखो।” टीवी पर गोर्बाच्योव लोगों को दिलासा दे रहे थे : “हमने तत्काल प्रभाव से कदम उठाए हैं।” मैंने इस पर भरोसा किया। मैने बतौर इंजीनियर बीस साल तक काम किया था। मैं भौतिकी के नियमों से भलीभाँति परिचित था। मैं जानता था कि हर जीवित चीज को वो जगह छोड़नी होगी, चाहे थोड़े समय के लिए ही। लेकिन हमने निष्ठापूर्वक अपने माप लिए और टीवी देखा। हमें विश्वास कर लेने की आदत पड़ गई थी।

जोया दानिलोव्ना ब्रुक पर्यावरण इंस्पेक्टर

मैं पर्यावरण रक्षा के निगरानी केंद्र में तैनात थी। हम लोग किसी तरह के निर्देश का इंतजार कर रहे थे लेकिन एक भी निर्देश नहीं मिला। उनकी हरकत तभी शुरू हुई जब बेलारूसी लेखक अलेक्सई आदमोविच ने मॉस्को में मामला उठाया और खतरे की चेतावनी दी। वे उससे कितनी नफरत करते थे! उनके बच्चे यहाँ रहते हैं, और उनके नाती-पोते भी, लेकिन उनकी बजाय एक लेखक दुनिया को बता रहा है : हमें बचाओ! आप सोचेंगे कि कुछ आत्मरक्षा का कोई तरीका निकल आएगा। इसके बजाय, तमाम पार्टी बैठकों में और धूम्रपान के लिए होने वाले ब्रेक्स में आप बस “उन्हीं निरे लेखकों” के बारे में सुनते थे। “वे अपनी नाक उस मामले में क्यों घुसा रहे है जिससे उनका लेना-देना नहीं? हमारे पास निर्देश हैं! हमें आदेशों का पालन करना होगा! वो क्या जानता है? वो कोई भौतिकविद् है क्या?!”

रेडियोधर्मी मिट्टी को दबाने के लिए उनके पास लिखित में प्रोटोकॉल है। हमने मिट्टी को मिट्टी में दबाया – एक अजीब मनुष्य गतिविधि। निर्देशों के मुताबिक, किसी भी चीज को दबाने से पहले हमें एक भूगर्भीय सर्वे करना था ये जानने के लिए दफन क्षेत्र के चार से छह मीटर के दायरे में भूजल तो नहीं है। हमें ये भी सुनिश्चित करना था कि गड्ढे की गहराई बहुत ज्यादा न हो। और उसकी दीवारें और तल पर पॉलीथाइलीन की परत चढ़ा दी जाए। लेकिन वास्तविकता में होता कुछ और ही था। हमेशा की तरह। कोई भूर्गभीय सर्वे नहीं। वे अपनी अँगुलियों से इशारा कर देते और कहते, यहाँ खोदो। खोदने वाली मशीन खोद देती। कितना भीतर गए हो। भला कौन जानता है। मैं रुक गई जब मैं पानी से टकराई। वे पानी में ही खुदाई कर रहे थे।

मेरा सबसे बड़ा एसाइनमेंट क्रास्नोपोल्स्क क्षेत्र में था, जहाँ हालत बहुत खराब थे। रेडियोन्यूक्लाइड, मैदानों के जरिए नदियों में न चले जाएँ, इसके लिए हमें फिर से निर्देशों का पालन करना था। दोगुने खाँचों को जोतना था, अंतराल छोड़ना था, और दोगुनी खापें भरनी थीं और ये सिलसिला बनाए रखन था। तमाम छोटी नदियों का दौरा करना था और उन्हें चेक करना था। जाहिर है मुझे एक कार की जरूरत थी। लिहाजा मैं क्षेत्रीय कार्यकारिणी के चेयरमैन के पास गई। अपना सिर अपने हाथों से पकड़े वो अपने दफ्तर में बैठा हुआ था : किसी ने योजना नहीं बदली थी, किसी ने फसल काटने के काम में रद्दोबदल नहीं किया था। जैसे उन्होंने मटर के दाने बोए थे, वैसा ही वे उसे काट रहे थे। जबकि सभी ये जानते थे कि मटर में सबसे ज्यादा विकिरण घुसता है, जैसे कि तमाम बीन्स में। उसके पास मेरे लिए समय नहीं था। सारे के सारे रसोइए और नर्सें बाल विहार (किंडरगार्टन) से भाग गए थे। बच्चे भूखे हैं। किसी का एपेन्डिक्स निकालना है तो आपको उसे एंबुलेंस में अगले इलाके की ओर ले जाना होगा। साठ किलोमीटर का सड़क का सफर। सारे सर्जनों ने हाथ खड़े कर दिए। कहाँ की कार कहाँ के दोगुने खाँचे, उसके पास मेरे लिए समय नहीं था।

लिहाजा मैं सेना के लोगों के पास चली गई थी। वे युवा लोग थे। छह महीनों से वहाँ डटे थे। लेकिन अब वे भयानक रूप से बीमार थे, उन्होंने मुझे चालक दल के साथ एक हथियारबंद निजी वाहन दे दिया। अच्छा था कि ये एक सुसज्जित सैन्य वाहन था जिसमें आगे मशीनगन लगी हुई थी। हम लोग इसमें जा रहे थे अपने जंगलों अपनी सड़कों से होते हुए। महिलाएँ अपने अपने दीवारों के पास खड़ी थी और रो रही थी – युद्ध के बाद से उन्होंने ऐसे वाहन नही देखे थे। उन्हें डर था कि नया युद्ध छिड़ गया है।

हम एक बूढ़ी महिला से मिले।

“बच्चों, मुझे बताओ, क्या मैं अपनी गाय का दूध पी सकती हूँ?”

हमने निगाहें झुका दीं, हमारे पास आदेश थे – सिर्फ डैटा जमा करने का। डैटा जमा करना लेकिन स्थानीय लोगों से मेलजोल मत करना।

आखिरकार हमारे वाहन का ड्राइवर बोल उठता है, “दादी अम्मा, आप कितने साल की हैं?”

“ओह, हाँ, अस्सी से ज्यादा। या उससे भी ज्यादा। मेरे दस्तावेज युद्ध के दौरान जल गए थे।”

“तो फिर आप जो मन करे वो सब पीती रहें।।”

मैं समझ गई थी। उस समय फौरन नहीं। लेकिन कुछ साल बाद कि हम सब उस अपराध में भागीदार थे।

विक्टर लातुन फोटोग्राफर

ज्यादा समय नहीं हुआ जब हमने अपने एक दोस्त को वहाँ दफनाया था। वो रक्त कैंसर से मरा था। हम जगे और स्लाविक परंपरा के मुताबिक हमने पी। और फिर आधी रात तक बातचीत होती रही। पहले उसके बारे में, जो मर गया था। लेकिन उसके बाद? देश की किस्मत और ब्रह्मांड के मंसूबे के बारे में। क्या रूसी फौज चेचन्या से हटेगी या नहीं? क्या काकेशस का दूसरा युद्ध होगा या वो पहले से ही शुरू हो चुका है। ब्रिटिश शाही खानदान और राजकुमारी डायना के बारे में। रूसी राजशाही के बारे में। चेर्नोबिल के बारे में, अलग अलग बातें। अलग अलग थ्योरियाँ। कुछ कहते हैं कि एलियन्स को इस विनाश का पता था और उन्होंने हमारी मदद की। दूसरे लोग कहते हैं कि ये प्रयोग था और जल्द ही अविश्वसनीय प्रतिभा वाले बच्चे पैदा होने लगेंगे। या बेलारूस के लोग गायब हो जाएँगे, स्काइथियनों, सरमतों, किमरीयों, हुआस्तेकों की तरह। हम लोग तत्वज्ञानी हैं। हम लोग इस धरती पर नहीं रहते हैं, बल्कि अपने सपनों में रहते हैं, अपने संवादों में। क्योंकि इस साधारण जीवन में आपको कुछ और जोड़ने की जरूरत होती है, इसे समझने के लिए। तब भी जब आप मौत के करीब होते हैं।

व्लादीमिर मातवीविच इवानोव स्तावगोरोद क्षेत्रीय पार्टी कमेटी के पूर्व प्रथम सेक्रेट्री

मैं अपने समय का प्रॉडक्ट हूँ। मैं परम कम्युनिस्ट हूँ। अब हम पर तोहमतें लगाना सुरक्षित हैं। ये फैशन में है। सारे कम्युनिस्ट अपराधी हैं। अब हम हर चीज का जवाब दें, भौतिकी के नियमों का भी।

मैं कम्युनिस्ट पार्टी की क्षेत्रीय कमेटी में प्रथम सचिव था। अखबारों में लिखा गया कि कुसूर, आप जानते हैं, किसका था, कम्युनिस्टों का : उन्होंने कमजोर, सस्ते एटमी संयंत्र बनाए, उन्होंने पैसे बचाने की कोशिश की, और लोगों की जिंदगियों की परवाह नहीं की। लोग उनके लिए महज रेत थे, इतिहास के उर्वरक। ठीक है। भाड़ मे जाएँ ऐसा लिखने वाले! भाड़ में! ये सब शापित सवाल हैं : क्या करें और किस को दोषी बताएँ? ये ऐसे सवाल हैं जो बने रहते हैं। हर कोई अधीर है, वे बदला लेना चाहते हैं। उन्हें खून चाहिए।

अन्य लोग खामोश हैं, लेकिन मैं आपको बताता हूँ। अखबार लिखते हैं कि कम्युनिस्टों ने लोगों को मूर्ख बनाया, उनसे सच्चाई छिपाई। लेकिन ऐसा करना पड़ा। हमें केंद्रीय कमेटी और क्षेत्रीय कमेटी से तार मिले थे, जिनमें हमें बताया गया था : तुम लोग दहशत फैलने से रोको। और ये सच है, दहशत एक डरावनी चीज है। उस समय डर था और अफवाहें भी फैली हुई थीं। लोग विकिरण से नहीं मरे थे, बल्कि घटनाओं से मरे थे। हमें एक दहशत को रोकना था।

क्या हो जाता अगर मैं कह देता कि लोगों को बाहर नहीं जाना चाहिए? वे कहते : “तुम मई दिवस में व्यवधान डालना चाहते हो?” ये एक राजनैतिक मामला था। वो मेरे पार्टी टिकट के बारे में मुझसे दरयाफ्त कर सकते थे। (हल्का सा शांत होकर) वे इस बात को नहीं समझते थे कि भौतिकी जैसी चीज भी आखिर होती है। ये एक चेन रिएक्शन है। और कोई आदेश या सरकारी प्रस्ताव उस चेन रिएक्शन को रोक नहीं सकता है। दुनिया भौतिकी के नियमों पर बनी हुई है, मार्क्स के विचारों पर नहीं। लेकिन अगर मैं ऐसा कह देता तब क्या होता? मई दिवस की परेड को रोक देने की कोशिश करता? (फिर से गुस्सा होते हुए।) अखबारों में वे लिखते हैं कि लोग सड़कों पर निकल आए थे और हम भूमिगत बंकरों में थे। मैं जबकि ट्रिब्यून में उस कड़ी धूप में दो घंटे तक खड़ा रहा था, बगैर हैट बगैर रेनकोट! और नौ मई को, विजय दिवस के मौके पर मैं अपने बुजुर्गों के जुलूस के साथ चला। उन्होंने हार्मोनिका बजाया था। लोग नाचे थे और उन्होंने खूब पी थी। हम सब उस सिस्टम का हिस्सा थे। हम यकीन करने वाले लोग थे, विश्वास करने वाले लोग थे। हमें ऊँचे आदर्शों पर विश्वास था, जीत पर? हम चेर्नोबिल को हरा देंगे…!

वासिली बोरिसोवित नेस्तेरेंको बेलारूस एकेडमी ऑफ सांइसेस में एटमी ऊर्जा संस्थान के पूर्व निदेशक

उस दिन, 2 अप्रेल, मैं अपने काम से मॉस्को में था। वहाँ मुझे हादसे का पता चला।

मैंने मिन्स्क में बेलारूस की कम्युनिस्ट पार्टी की केंद्रीय कमेटी के महासचिव स्लाइयुनकोव को फोन लगाया। एक बार, दो बार, तीन बार मैंने कोशिश की लेकिन मेरी उनसे बात नहीं कराई गई। फिर मैंने उनके सहायक को फोन मिलाया, वो मुझे अच्छी तरह जानता था।

“मैं मॉस्को से बोल रहा है। मेरी स्लाइयुनकोव से बात करा दो। मेरे पास उनके लिए एक जरूरी संदेश है। आपात सूचना।”

आखिरकार करीब दो घंटे बाद मेरी स्लाइयुनकोव से बात हो पाई।

“मुझे पहले ही रिपोर्टें मिल गई हैं,” स्लाइयुनकोव कहता है। “आग लगी थी, लेकिन बुझा दी गई।”

मैं ये बर्दाश्त न कर सका। “ये झूठ है! ये एक खुला झूठ है!”

29 अप्रैल को – मुझे हर चीज बहुत अच्छी तरह याद है, तारीख के साथ – आठ बजे सुबह, मैं स्लाइयुनकोव के दफ्तर के स्वागत कक्ष में बैठा हुआ था। मुझे अंदर जाने नहीं दिया जा रहा था। मैं वहाँ पर, ये समझिए कोई साढ़े पाँच बजे तक बैठा रहा। साढ़े पाँच बजे एक प्रसिद्ध कवि स्लाइयुनकोव के दफ्तर से बाहर निकले। मैं उन्हें जानता था। उन्होंने मुझसे कहा, “कॉमरेड स्लाइयुनकोव और मैंने बेलारूस की संस्कृति पर बात की।”

“बेलारूस की संस्कृति नही बचने वाली है,” मैं फट पड़ा था, “या आपकी किताबों को भी पढ़ने के लिए कोई नहीं बचेगा, अगर हमने फौरन चेर्नोबिल से हर व्यक्ति को निकाला नहीं तो! अगर हमने उनकी जान नहीं बचाई तो!”

“क्या मतलब है तुम्हारा? आग तो पहले ही बुझा दी गई है।”

आखिरकार मुझे स्लाइयुनकोव से मिलने का अवसर मिल ही गया।

“तुम्हारे आदमी (संस्थान के कर्मचारी) शहर में गाइगर काउंटर (रेडियोएक्टिव विकिरण की जाँच के लिए उपकरण) लिए क्यों भागे फिर रहे हैं, हर किसी को डराते हुए? मैंने मॉस्को से पहले ही बात कर ली है। मेरी अकादमिक इल्यीन से बात हो गई है। उनका कहना है कि सब कुछ सामान्य है। और सरकारी आयोग स्टेशन पर मौजूद है, प्रोसीक्यूटर का दफ्तर भी वहीं है। हमने सेना बुला ली है। हमारा सारा सैन्य साजोसामान तैयार है।”

वे लोग अपराधियों का गिरोह नहीं थे। इसे जहालत और फर्माबरदारी की साजिश के रूप में देखना चाहिए। उनके जीवन का सिद्धांत यही था, पार्टी मशीन ने उन्हें जो एक चीज बताई थी वो यही थी कि कभी भी अपनी गर्दन मत घुसाओ। हर किसी को खुश रखना बेहतर है…। मैं शर्तिया कह सकता हूँ कि क्रेमलिन से फोन जरूर आया होगा। सीधे गोर्बाच्योव से। उन्होंने ये कहा होगा कि “मुझे उम्मीद है बेलारूस के तुम लोग दहशत न फैलने दोगे, पश्चिम ने तो शोर मचाना शुरू कर दिया है।” …अब इसके बाद क्या होता है… लोग अपने से ऊपर के लोगों यानी अपने वरिष्ठों से ज्यादा डरते हैं, एटम बम से नहीं।

मैं भी गाइगर काउंटर लेकर निकला था। सचिव और शोफर कहते थे, “प्रोफेसर आप सबको डराते क्यों घूम रहे हैं? क्या आप सोचते हैं कि बेलारूस की फिक्र करने वाले आप अकेले हैं? और वैसे भी जान लें, कि लोगों को किसी न किसी वजह से मरना ही पड़ता है। धूम्रपान से, या वाहन दुर्घटना से या फिर आत्महत्या से।”

नताल्या आरसेनयेव्ना रोस्लोवा, चेर्नोबिल के बच्चों के लिए गठित मोगिलेव वीमेन्स कमेटी की प्रमुख

वो महान साम्राज्य चूर चूर हुआ और ढह गया। पहले अफगानिस्तान और फिर चेर्नोबिल। जब वो गिरा, तो हम सबने खुद को अकेला महसूस किया। मैं ये कहने से डरती हूँ, लेकिन हम चेर्नोबिल से प्यार करते हैं। उससे हमारे जिंदगी में मानी पैदा होते हैं। हमारी तकलीफ के मायने। युद्ध की तरह। दुनिया को हमारे वजूद के बारे में चेर्नोबिल के बाद पता चला। हम इसके शिकार हैं लेकिन इसके पुजारी भी हैं। ये कहने से डर लगता है, लेकिन बात यही है।

और ये एक खेल की तरह है, एक शोर जैसा। मैं मानवीय मदद के एक काफिले के साथ हूँ और कुछ विदेशियों के साथ जो ये मदद लेकर पहुँचे हैं। भले ही ईसा के नाम पर या किसी और बहाने। और बाहर, कीचड़ में और मिट्टी में, अपने कोट और अपने दस्तानों में मेरा कबीला है। अपने सस्ते बूटों में। और अचानक मेरे भीतर एक बेरहम और घिनौनी इच्छा आती है। मैं आपको कुछ दिखाऊँगी, मैं कहती हूँ। ऐसा आप अफ्रीका में कभी नहीं देखेंगें। ऐसा आप कहीं नहीं देखेंगे। दो सौ तरकारियाँ, तीन सौ तरकारियाँ।

(रूसी से कीथ गैसन के अनुवाद का रूपांतर , द पेरिस रिव्यू से साभार)

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