आज चौदह फरवरी है
और गुप्ता अंकल रो रहे हैं
सिसक रहे हैं, फफक रहे हैं
आँसुओं के सैलाब में वसंत को गीला कर रहे हैं
उनकी पुरानी दुकान जो कॉलेज के सामने थी
आज सुबह बेरहमी से तोड़ी गई है
बिन पते के रंगीन ग्रीटिंग कार्ड फाड़े गए हैं
नाजुक गिफ्टों को क्रूरता से पटका गया है।
जो कुछ किस्मत से बच गया है,
उसे वे सहेज कर सँजो रहे हैं।
आज चौदह फरवरी है
और गुप्ता अंकल रो रहे हैं
उनकी जीविका को जम कर लहूलुहान किया गया है
उनके लड़कों को खूब पीटा-घसीटा गया है
वे मुझसे पूछते हैं कि यह कैसी ऋतु खिली है?
पैंसठ सालों की जिंदगी में यह आज कैसा वसंत है?
अपनी पुरानी फरवरियों की यादों को वे सिरे से पिरो रहे हैं।
आज चौदह फरवरी है
और गुप्ता अंकल रो रहे हैं।
आज चौदह फरवरी है
और गुप्ता अंकल रो रहे हैं
उन्होंने वैलेंटाइन और वसंत को एक ही माना था
आज उन्हें सुबह बताया गया कि वैलेंटाइन और वसंत
दो अलग-अलग मेल के इश्क हैं
एक फिरंग है, दूसरा स्वदेशी
इसलिए भारत में विदेशी ढंग से प्यार नहीं किया जाएगा
आप भला क्यों आधुनिकता के नाम पर
अश्लीलता छात्रों में बो रहे हैं?
मत रोइए अंकल
आँसू पोंछ दीजिए अपने
जिन्होंने यह बलवा काटा है
वे जानते नहीं कि सरस्वती और कामदेव, दोनों
एक ही दिन की पैदाइश हैं
उनका असर एक ही उम्र पर गहरा है
उन दोनों को लाख कोशिश के बाद भी
अलग-अलग किया नहीं जा सकता।
तालीम और मुहब्बत, एक ही दिमाग के कमरे में
एक उम्र तक, एक ही संग रहा करते हैं
अगर एक पर चोट की जाएगी
तो दूसरा चोटिल होगा
अगर एक को घाव दिया जाएगा
तो दूसरा घायल होगा
वैलेंटाइन तो बहाना है अंकल
दमन का दर्द तो असल में दिया जा रहा है
सरस्वती और कामदेव को, एक साथ
प्रेम और विद्या एक ही मेल के होते हैं
हमेशा, हर जगह, हर समय
और अगर दोनों ही नहीं जन्मेंगे
तो न जिस्म पैदा होंगे और न बुद्धि
और तब पूरी दुनिया में
अखंड, एकछत्र राज्य होगा मौत का।
ग्रीटिंग कार्ड फाड़ने वाले,
कोर्स की किताबों को भी नहीं बख्शेंगे
और न गिफ्ट तोड़ने वाले ये देखेंगे कि वह फैंसी पेन
कभी इम्तहान लिखने के भी काम आ सकती है
इसलिए यह ऋतुराज के मौसम में पतझड़ की आहट है
पर्यावरण बदल रहा है, इसे बूझिए भलीभाँति
आप क्यों वैलेंटाइन और वसंत के नामों में
उलझ कर उनके गहरे सारांश को खो रहे हैं?