चक्रव्यूह | प्रतिभा कटियारी
चक्रव्यूह | प्रतिभा कटियारी

चक्रव्यूह | प्रतिभा कटियारी

चक्रव्यूह | प्रतिभा कटियारी

तुम बुन रहे थे चक्रव्यूह,
मैं खुश थी कि
उस दौरान
मेरा ख्याल था तुम्हारे आस-पास
तुम रच रहे थे साजिशें
मैं खुश थी कि
ध्यान मेरी ही तरफ था तुम्हारा
उस सारे वक्त में
तुम लगा रहे थे आरोप
मैं खुश थी कि
कितनी शिद्दत से
सोचा होगा तुमने मेरे बारे में
जब तय किए होंगे आरोप
तुम इकट्ठे कर रहे थे पत्थर
मैं खुश थी कि
इसी बहाने
इकट्ठी कर तो रहे थे अपनी ताकत
और इतनी देर
दुनिया के कारोबार में
नहीं डाला खलल तुमने…

Leave a comment

Leave a Reply