क्या हो गया है मुझे? मुझ जैसा तर्कसम्मत व्यक्ति भी किन चक्करों में फँस गया है? …क्या प्यार मनुष्य को इतना कमजोर बना देता है? …नहीं… संभवतः प्यार के खो जाने का डर उससे कुछ भी करवा सकता है… शायद… इसीलिए इस कैंसर समूह ने मुझे इस बुरी तरह जकड़ लिया है।

कैंसर!

‘युअर वाइफ इज सफरिंग फ्राम कार्सीनोमा…’

उस समय इन शब्दों का वजन ठीक से महसूस नहीं हो पाया था। इतने भारी-भरकम नाम वाली बीमारी ने जैसे मुझे बौरा दिया था। डॉ. पिंटो अपने प्रोफेशनल अंदाज में मुझे समझा रहे थे कि मेरी पत्नी को क्या बीमारी हो गई है।

‘इसका मतलब क्या हुआ डॉक्टर साहब?’ मेरी आवाज रिरियाती हुई सी निकली थी।

‘वैल! सीधे सादे शब्दों में यूँ भी कह सकते हैं, कि आपकी वाइफ को कैंसर है और उनकी ‘लेफ्ट ब्रेस्ट’ का ऑपरेशन करना होगा… यानी कि ‘रैडिकल मैसेक्टमी’॥

पूनम को कैसे बताऊँगा? …कल उसका जन्मदिन है… तैंतीसीसवाँ जन्मदिन… क्या यह समाचार उसके जन्मदिन का तोहफा है? …क्या उससे झूठ बोल जाऊँ? …पर वह क्या दूध पीती बच्ची है? …रिपोर्ट तो माँगेगी ही… देखेगी भी… और पढ़ेगी भी… तो फिर?

‘रैडिकल मैसेक्टमी’… यानी कि बाईं ब्रेस्ट का काटना… यानी कि पूनम अधूरी… यह मैं क्या सोचने लगा? …क्या मैं पूनम को केवल छातियों की गोलाई के कारण प्यार करता हूँ? विवाह के दस वर्षों का अर्थ क्या केवल छातियाँ ही हैं? …नहीं-नहीं… यह ऑपरेशन तो क्या दुनिया का कोई भी हादसा उसकी पूनम को अधूरा नहीं बना सकता… पूनम तो मेरे जीवन का सरमाया है… मेरी पूँजी है।

मुझे दस वर्ष चाँद-सी ठंडक देने वाली पूनम पर अब क्या गुजरने वाली है? …आकांक्षा तो थोड़ी समझदार है… आठ वर्ष की हो गई है… परंतु अपूर्व तो अभी केवल तीन साल का ही है… क्या वह अभी से बिन माँ का हो जाएगा? …क्या पूनम भी बस एक तस्वीर बन कर लटक जाएगी, जिस पर एक हार चढ़ा होगा?

‘फिर आप क्या सलाह देते हैं डॉक्टर साहब’, मेरी आवाज रो रही थी।

‘इसमें अब सलाह जैसी तो कोई बात है ही नहीं मि. मेहरा! मैं तो यही कहूँगा कि ऑपरेशन जल्दी से जल्दी हो जाना चाहिए। अब यह ऑपरेशन चाहे आप टाटा से करवाएँ या हमारे यहाँ… ऑपरेशन है बहुत जरूरी… फिर आप तो किस्मत वाले हैं… अभी तो पहली स्टेज है टी.वन, एन.जीरो।’

‘आपका मतलब है… अभी फैला नहीं है?’ मेरी आवाज जैसे कमरे में चारों ओर फैल गई थी।

जब चावला आंटी का ऑपरेशन हुआ था, तो जैसे मुझे कुछ भी महसूस नहीं हुआ था… वे बेचारी रेडियेशन को बिजली और कीमोथिरेपी को बड़ा इंजेक्शन कहने वाली अनपढ़ आंटी। पर आंटी के ऑपरेशन को तो आठ वर्ष से ऊपर हो गए। चावला आंटी तो उस समय ही पैंतालिस से ऊपर की थीं… किंतु डॉ. पिंटो तो कुछ और ही कह रहे थे, ‘वो क्या है मि. मेहरा आई वुड पुट इट दिस वे, कि ब्रेस्ट कैंसर में मरीज जितना जवान रहता है, इलाज उतना ही मुश्किल हो जाता है। मंथली हार्मोनल डिस्टरबैंस इलाज में सबसे बड़ी बाधा होती है… मेनोपॉज के बाद मरीज का इलाज उतना ही ज्यादा आसान हो जाता है।’

पूनम तो अभी तैंतीस भी पूरे नहीं कर पाई… सबसे पहले दिल्ली फोन करता हूँ… पर बाऊजी तो स्वयं ही दिल के मरीज हैं। इस समाचार से न जाने क्या असर होगा उनकी सेहत पर? बंबई शहर में एक भी तो रिश्तेदार नहीं अपना… परेदस जैसा देश है… पूनम के घरवालों से तो बात करनी ही होगी। उनसे सलाह लिए बिना तो कोई भी कदम नहीं उठाना चाहिए।

पर जिसके बारे में कदम उठाना है, पहले उससे तो बात कर लूँ। आकांक्षा भी तो दम साधे, अपनी मम्मी की रिपोर्ट की प्रतीक्षा कर रही होगी। अपूर्व तो अपने खिलौनों में मस्त होगा… पूनम के दिल पर यह प्रतीक्षा की घड़ियाँ क्या असर कर रही होंगी? … उसने तो कहा भी था कि अस्पताल से ही फोन कर देना… फोन करने की हिम्मत मुझमें थी कहाँ?…क्या कहता?

कहना तो पड़ेगा ही। सब कुछ बताना पड़ेगा। फिल्मों में लोग कितनी आसानी से मरीज से उसकी बीमारी छुपा लेते हैं… पूनम को क्या कहूँ, ‘पुन्नी, क्योंकि तुम्हें जुकाम हो गया है, इसलिए तुम्हारी बाईं ब्रेस्ट कटवाने जा रहा हूँ।’ …आज समझ आ रहा था कि पूनम क्यों सदा ही चावला आंटी के प्रति सहानुभूतिपूर्ण रवैया रखती थी… क्यों उनकी छोटी से छोटी जिद भी पूरा करने की कोशिश पूनम करती थी… सहज नारी प्रतिक्रिया।

प्रतिक्रिया तो व्यक्त करता है चंद्रभान। बात-बात पर बहस करने को उतारू हो जाता है। कहने को तो मेरा मित्र है, किंतु उसके पास हर मर्ज का एक ही इलाज है -विश्वास! …देवी-देवताओं में अंध-विश्वास। वह तो यह भी पूछ बैठेगा, ‘डॉक्टर के पास गए ही क्यों?’ उसे तो डॉक्टरी और शल्यक्रिया समझ ही नहीं आती।

वैसे यदि डॉक्टर के पास न भी गए होते तो भी क्या फर्क पड़ता? …पूनम को न तो कोई दिक्कत थी न ही कोई शिकायत… दर्द, बुखार, थकान, कमजोरी… कुछ भी तो नहीं था। वो दिन भी कितने खुशी के दिन थे। सारा परिवार लंदन में छुट्टियाँ मना रहा था। चार सप्ताह कैसे बीत गए थे, पता ही नहीं चला था। आकांक्षा तो अभी भी वाटर पैलेस, चेजिंगटन जू, आल्टन टॉवर की बातें करती नहीं थकती। मैडम तुसाद संग्रहालय में तो पूनम भी चकित रह गई थी कि मोम के पुतले कितने असली लग सकते हैं… किंतु पूनम का व्यवहार सदा की भाँति सधा हुआ, संतुलित रहा। अपनी खुशी और उदासी पर न जाने कैसा नियंत्रण था उसका।

वहीं लंदन में ही एक दिन नहाकर गुसलखाने से बाहर निकली तो बाईं छाती में छोटी-सी गाँठ महसूस हुई थी। उस गाँठ को आजतक खोलना कितना मुश्किल पड़ रहा है। पूनम का व्यवहार तो गाँठ देखने के बाद भी पूरी तरह से नियंत्रित था।

नियंत्रण! यहीं तो पूनम की विशेषता है। पर क्या आज का समाचार सुनने के बाद भी क्या वह अपनी भावनाओं पर काबू रख पाएगी? यदि वह बेकाबू होने लगी तो मैं स्वयं क्या करूँगा? …मैंने तो अपने दस वर्षीय विवाहित जीवन में पूनम को आंदोलित होते कभी देखा ही नहीं। आज उसकी प्रतिक्रिया क्या होगी? वह तो बड़ी से बड़ी दुर्घटना को सहज रूप से ले लेती है।

‘मेरे मम्मी-डैडी मेरी शादी की बात कहीं चला रहे हैं।’ पूनम ने बड़ी सहजता से बता दिया था। आर्ट्स फैकल्टी के बाहर बैठा कुल्चे-छोले खा रहा था। दरअसल कुल्चे-छोले तो पूनम को खाने पड़ते थे। मैं तो उसका टिफिन ही खाया करता था… अगला कौर तो हाथ में ही रह गया था। इतनी बड़ी बात और पूनम आराम से कुल्चा खा रही थी… तो फिर क्या करें?’ मैं घबरा गया था।

‘मैं अपने जीजा जी से बात करूँगी। अगर वे मान गए तो मम्मी-डैडी को मना लेंगे।’

जीजाजी, भाईजी, मम्मी-डैडी और बहनें सभी मान गए थे। पूनम को कोई भी भला इन्कार कैसे कर सकता है। उसके व्यक्तित्व से अभिभूत हुए बिना कोई रह ही नहीं सकता। कालेज में भी तो कितने ही लड़के उस पर मरते थे। परंतु पूनम ने मुझे चाहा तो बस…

खूबसूरत लम्हों का एक सागर इकट्ठा कर लिया है पूनम ने मेरे लिए। कई जीवन उन हसीन लम्हों के सहारे बिता सकता हूँ। गर्दिश के दिनों में दोनों फर्श पर बिस्तर बिछा कर भी सोए। एक-एक करके पूनम ने घर की सभी चीजें बनाईं… घर बनाया। मुझे सँवारा, तराशा। और आज जब अपनी मेहनत का फल पाने का समय आया तो यह बीमारी।

मुझे मालूम था यही होगा। पूनम ने बिना कुछ पूछे ही रिपोर्ट मेरे हाथ से ले ली थी। रिपोर्ट पढ़ने के बाद काफी समय कमरे में एक मुर्दा चुप्पी छाई रही। आकांक्षा की आँखें अपनी मम्मी पर गड़ी थीं।

‘पूनम घबराने की कोई बात नहीं। डॉ. पिंटो कह रहे थे कि बहुत इनीशियल स्टेज है। और इस स्टेज पर तो शर्तिया इलाज हो सकता है।’

पूनम ने रिपोर्ट एक तरफ सरका दी। आकांक्षा को अपने पास खींच लिया और उसके सिर पर एक चुंबन अंकित कर दिया। उसकी दोनों आँखों में आँसुओं की एक लकीर सी उभर आई थी। वो लकीर मुझे अंदर तक कहीं चीर गई थी। उस रात बिना भोजन किए हम सब सो गए थे।

सुबह आकांक्षा जब स्कूल चली गई और अपूर्व नर्सरी में तो पूनम ने मुझे सँभाला, ‘जब कह रहे हो कि पहली स्टेज है तो चेहरे पर मुर्दनी क्यों फैला रखी है। चावला आंटी भी तो कितनी सालों से चल ही रही हैं। मैं भी ठीक हो ही जाऊँगी।’

मुझे लग रहा था मुझसे बड़ा बेवकूफ दुनिया में दूसरा कोई हो ही नहीं सकता। पूनम का हौसला मुझे बढ़ाना चाहिए था और यहाँ सब कुछ उल्टा हो रहा है। बस आगे बढ़कर पूनम को बाँहों में भर लिया था।

बिल्डिंग में बात फैलते देर नहीं लगी। करुणा को पूनम ने बताया; करुणा ने मधु को और मधु ने मिसेज रंगनाथन को। मिसेज रंगनाथन को पता चलने का अर्थ है कि पी.टी.आई. और यू.एन.आई. दोनों को एक साथ पता चलना। नेशनल नेटवर्क पर बिल्डिंग में शोर मच गया। टाटा के डॉक्टरों के नाम, पते सब मालूम होने लगे। मेरा विश्वास अभी भी डॉ. पिंटो में पूरी तरह जमा हुआ था।

डॉ. पिंटो के क्लिनिक में एक बार फिर पहुँच गए, ‘डॉ. पिंटो! आपसे एक सवाल पूछना है… मैं अपनी पत्नी का ऑपरेशन टाटा के किसी भी डॉक्टर से करवा सकता हूँ, विदेश चाहूँ तो वहाँ भी ले जाऊँ। फिर भला आपसे ही हम ऑपरेशन क्यों करवाएँ।’

एक क्षण के लिए गुस्सा डॉ. पिंटो के चेहरे पर आया और कपूर बनकर उड़ गया। उन्होंने अपनी छाती पर क्रास बनाया, ‘मिस्टर मेहरा, मैंने तो एक बार भी आपसे नहीं कहा कि ऑपरेशन मुझसे ही करवाएँ। आप पिछले बीस मिनट से मुझसें बातें कर रहे हैं। जरा टाटा में करके देखिए। और फिर बंबई में एक भी कैंसर सर्जन ऐसा नहीं है जिसने टाटा में काम न किया हो। ऑपरेशन आप कहीं से भी करवाइए, किसी से भी करवाइए, पर जल्दी करवाइए… अभी पहली स्टेज है… कहीं देर ने हो जाए। आई वुड पुट इट दिस वे… कि आजकल हर बड़ा अस्पताल कैंसर सर्जरी के लिए पूरी तरह से ‘इक्विप्ड’ है… और सर्जन लोग तो छोटे नर्सिंग होम में भी आपरेशन कर देते हैं… बाकी आप जैसा ठीक समझें।’

डॉ. पिंटो की दो टूक बातों ने पूनम और मेरा दोनों का दिल जीत लिया था। कुछ क्षणों के लिए हम दोनों कैंसर की भयावहता से जैसे मुक्त हो गए थे। कभी हम डॉ. पिंटो को देखते तो कभी हम जीसस क्राइस्ट की फोटो को। आपरेशन का दिन तय कर आए हम दोनों।

रात आने का समय तो तय है। अबकी बार डर रहे थे कि रात अपने साथ-साथ क्या-क्या लाने वाली है। कितनी लंबी होगी यह रात? क्या इस रात के बाद सवेरा देख पायेंगे?

बच्चे सो चुके थे। ऑपरेशन को बस चार रातें बाकी थी। मन में उमड़ते-घुमड़ते विचार जैसे रिले रेस में छोड़ रहे थे। पहला ख्याल हट भी नहीं पाता था कि दूसरा उसकी जगह ले लेता था। मैं उन विचारों की उधेड़-बुन में फँसा हुआ था जब पूनम रसोई की बत्ती बुझाकर बेडरूम में पहुँची। रोज की तरह आज भी सोने से पहले स्नान करके आई थी। बदन से चंदन की खुश्बू उसकी नाइटी की लक्ष्मण रेखा को तोड़कर बाहर पूरे कमरे में फैल रही थी। आकर चुपचाप बिस्तर पर लेट गई। सदा की तरह आँखें बंद कर गायत्री मंत्र का जप करने लगी। मैं उस सात्विक चेहरे को निहारे जा रहा था। समझ ही नहीं आ रहा था ऐसे फरिश्ते भी ऐसी भयानक बीमारी के शिकार हो सकते हैं।

‘मुझे बहुत प्यार करते हो?’

‘यह क्या बात पूछी तुमने?’

‘मुझे तुमसे एक बहुत बड़ी शिकायत है नरेन। तुम कभी भी मेरे बारे में पजेसिव नहीं हुए… मैं चाहे किसी से भी बात करूँ, किसी के साथ घूमने जाऊँ, तुम्हे बुरा ही नहीं लगता… मुझे लेकर तुम्हारे दिल में कभी जलन या ईर्ष्या की भावना नहीं जागती… एक बात बताओ… मेरे शरीर को भी उतना ही प्यार करते हो… जितना कि मुझे?’

‘पूनम!’…

‘नहीं, सच-सच बताओ… आज तुम्हारे मुँह से सुनना चाहती हूँ।’

‘मैं सिर से पाँव तक, तुम्हारे शरीर के एक-एक अंग से बहुत प्यार करता हूँ।’

और पूनम ने अपनी नाइटी उतार दी थी, ‘देख लो नरेन, जितना जी चाहे देख लो। जितना प्यार करना चाहो कर लो। अब तो बस चार रातें बाकी हैं। फिर जिंदगी कभी भी सहज नहीं हो पाएगी… तुम्हारी अपनी प्यारी चीज सदा के लिए बिछड़ जाएगी… मुझसे नफरत तो नहीं करने लगोगे… सच! इसमें मेरा कोई दोष नहीं है नरेन।’

फूट पड़ी थी पूनम की रुलाई। मेरी छाती उसके आँसुओं से गीली हो रही थी। मुझे ही फैसला करना था। पूनम को समझा देना था कि एक छाती के साथ भी पूनम मेरे लिए उतनी ही आकर्षक, प्यारी और जरूरी होगी, जितनी कि आज! मुझे एकाएक बहुत बड़ा हो जाना था। मैं पूनम की परिपक्वता पर आश्रित होने का आदी हो चुका था। अब मुझे इस किरदार को पूरी शिद्दत से समझना होगा, निभाना होगा।

डॉ. पिंटो का विश्वास, पूनम का साहस और हालात की संजीदगी सब मेरी हिम्मत बढ़ा रहे थे। ऑपरेशन से एक दिन पहले पूनम को हस्पताल में भर्ती करवाना था। छाती का एक्सरे, खून टेस्ट, ई.सी.जी. और जाने क्या-क्या। रात का खाना भी पूनम को जल्दी खिला दिया गया था। रात को डॉ. पिंटो के सहायक डॉ. शाह और डॉ. दवे दोनों पूनम का चेकअप करने आए थे। मैं अब भी उम्मीद लगाए बैठा था कि शायद उनमें से कोई कह दे कि पूनम को कैंसर नहीं है।

कमरे से बाहर निकलते-निकलते डॉ. दवे की आवाज कानों से टकराई, ‘शिरीश, डू यू थिंक ‘सर’ हैज डायग्नॉज्ड दि केस करेक्टली?’

‘हाँ यार! सिम्पटम तो कोई दिखाई नहीं दे रहा। शी लुक्स परफेक्टली नार्मल, एंड सो यंग।’

दम साधे सब सुन रहा था। पर रिपोर्ट मेरे सामने रखी थी। रिपोर्ट में साफ-साफ। लिखा था कि ब्रेस्ट में बिखरे-बिखरे कैंसर सेल मौजूद हैं… चमत्कार कर दो प्रभु… सुबह आपरेशन टेबल पर डॉ. पिंटो को गाँठ दिखाई ही न दे।

दिमाग शायद शांत होना ही नहीं चाहता था। इसलिए तो अशांत आत्मा की तरह इधर-उधर भटक रहा था… पूनम… कैंसर… छातियाँ… रिश्ते… संबंध… न जाने क्या-क्या। कई बार हैरान भी होता था कि पूनम और मैं एक ही जैसा भाग्य लेकर क्यों जन्में। पूनम भी बीच की है, उससे बड़ा एक भाई और छोटी एक बहन। मैं भी बीच का हूँ, मुझसे बड़ी एक बहन और एक बहन छोटी। दोनों की शक्लें अपने-अपने परिवार में किसी से भी नहीं मिलती। दोनों को ही साहित्य से लगाव था। दोनों की सासें तो हैं, पर परंतु माँ किसी एक की भी नहीं। नहीं तो इस वक्त कोई एक माँ तो हमारे साथ होती। अपने बच्चों को अकेला घर में छोड़कर हम दोनों अस्पताल में यूँ न बैठे होते। बाहर भी अँधेरा है और भीतर भी। सुबह की रोशनी की प्रतीक्षा है।

सुबह को आना ही था। आज तो सुबह थोड़ी जल्दी ही हो गई थी। पूनम को खाने को कुछ भी नहीं दिया गया था – बस चाय।

पूनम उठकर स्वयं ही नहाई थी। उसके बदन से भीनी-भीनी खूश्बू उठ रही थी। खुश्बू! जो सदा मुझे दीवाना बना देती थी। उस डैटॉल और स्पिरिट से भरे माहौल में भी पूनम के बदन की खुश्बू मेरे नथुनों तक पहुँच रही थी। जैसे बलि से पहले उसे सजाया जा रहा था।

सुशील अपनी पत्नी लुईजा के साथ आया था। दोनों पूनम का हाथ पकड़े प्रभु यीशु से प्रार्थना कर रहे थे। मन ही मन, बिना सुने, मैं उनकी हर बात दोहरा रहा था। सबके दिल में एक ही दुआ थी।

डॉ. पिंटो को देखते ही दिल उछलकर गले में आ फँसा था। जल्दी से उनके करीब पहुँचा, ‘डॉक्टर, आपको पक्का यकीन है कि कैंसर ही है? कहीं कोई गलती तो नहीं हो रही?’ मैं कैसे कहता कि मैं उनके सहायकों की बातचीत सुन चुका हूँ।

डॉ. पिंटो ने अपनी छाती पर क्रास बनाया, ‘लुक मि. मेहरा, मैं पहले ‘लंप’ को निकाल कर ‘कोल्ड सेक्शन टेस्ट’ करूँगा। अगर टेस्ट ठीक रहा, तो पैंतालिस मिनट में हम बाहर आ जाएँगे… अगर, ‘नोड्ज ‘ इन्वाल्व हुए, तो मेजर ऑपरेशन करना होगा। नाउ, बेस्ट आफ लक !’

और मैं बस देख रहा था। पूनम गाड़ी पर लेटी अंदर पहुँच गई थी। डॉ. पिंटो ने कपड़े बदलकर हरा सा कोट पहन लिया था। बेचैनी मेरे रक्त के साथ-साथ मेरे शरीर में संचार कर रही थी। यदि खून टेस्ट करने में बेचैनी की मात्रा टेस्ट करने का कोई यंत्र होता, तो मेरे मन की बेचैनी उस यंत्र की सभी सीमाएँ लाँघ जाती।

अभिनव मेरा हाथ थामे खड़ा था। अपनी शूटिंग आज कैंसिल कर दी थी। फिर भी उसे वहाँ खड़ा देखकर लोग समझ रहे थे शायद कोई शूटिंग हो रही है। विश्वास दादा ने जैसे मेरे विश्वास को थाम रखा था। उनकी उभरी हुई जेब में सौ-सौ रुपयों की गड्डी अपने ढंग से मेरा हौसला बढ़ा रही थी।

पैंतालिस मिनट, एक घंटा, दो घंटे, तीन घंटे… वक्त धीरे-धीरे बढ़ रहा था। मेरी निस्तेज निगाहें शून्य में दूर कहीं कुछ खोज रही थीं। ‘कोल्ड सेक्शन।’ …पाजिटिव’… जीवन भर सिखाया गया था पाजिटिव होना कितनी अच्छी बात है… परंतु आज का टेस्ट पाजिटिव होने का अर्थ कितना भयानक है… आकांक्षा और अपूर्व तो आज स्कूल भी नहीं गए। दम साधे घर में ही पड़े हैं… पाजिटिव… कार्सीनोमा… लेफ्ट ब्रेस्ट… रैडिकल मैसेक्टमी!

चिंता और बोरियत बाहर बैठे चेहरों पर साफ दिखाई दे रही है। सब की चिंता का विषय एक ही – ‘इतनी छोटी उम्र में ऐसी भयंकर बीमारी! …बच्चों का क्या होगा? अभी तो बहुत छोटे हैं।’

और डॉ. पिंटो बाहर निकले। छाती पर एक बार फिर क्रॉस बनाया। ‘गॉड इज ग्रेट’ मि. मेहरा! सब ठीक हो गया। मैंने काफी गहरे तक ऑपरेट किया है। कैंसर आल-रेडी नोड्ज तक पहुँच गया था… अभी तो बेहोश पड़ी हैं आपकी वाइफ… बट… जल्दी ही होश आ जाएगा… यस… आप आइए, आपको दिखा देते हैं क्या ऑपरेट किया है।’

ना चाहते हुए भी डॉ. पिंटो के साथ हो लिया। एक ट्रे में माँस का लोथड़ा रक्त से सना पड़ा था। टयूमर अलग से दिखाई दे रहा था। मेरे सबसे प्रिय व्यक्ति का सबसे प्रिय अंग मेरे सामने कटा पड़ा था… जैसे अपनी एक आँख से मुझे घूर रहा था… अपने आप पर काबू नहीं रख पाया… एक तेज सी उबकाई उठी… कार्सीनोमा… मैसेक्टमी… ट्रे… पूनम! चक्कर खाकर वहीं बैठ गया… विश्वास दादा और अभिनव, दोनों मुझे सहारा देकर बाहर ले आए।

मन थोड़ा स्थिर हुआ तो ख्याल आया कि पूनम को तो देखा ही नहीं। वापस ऑपरेशन थियेटर में जाने की हिम्मत नहीं हो पा रही थी। पूनम को कैसे देख पाऊँगा। उसकी आँखें मुझसे क्या सवाल पूछेंगी… पर वह तो बेहाश है… पूनम को ऑक्सीजन दी जा रही थी… चेहरा जर्द… खून चढ़ रहा था। शरीर जैसे नलियों से अटा पड़ा था। ऑपरेशन कामयाब रहा था।

अस्पताल का स्पेशल वार्ड-ए, कमरा न। चौबीस में पहुँच गई थी पूनम… चौबीस… उसका जन्मदिन। कमरा भी उसी नंबर का… एक-एक करके सभी दोस्त और जान-पहचान वाले चले गए थे। कमरे में एक मैं, एक पूनम और एक एयर-कंडीशनर की आवाज। प्रतीक्षा कर रहा था कि पूनम थोड़ा कसमसाए ही सही। परंतु अभी तो नशीली दवा का गहरा असर था। पूनम तो बस सोए ही जा रही थी।

और मैं उसे देखे जा रहा था… एअर-कंडीशनर की आवाज पर सवार विचार मेरे दिमाग को मथे जा रहे थे। पूनम से पहली मुलाकात से लेकर आज तक की प्रत्येक घटना मेरे मानस पटल पर उजागर होने लगी थी। क्या ठीक हो जाएगी पूनम? …क्या फिर वही सुहाने दिन लौट आएँगे? पूनम को कैंसर हुआ ही क्यों? …डॉ. पिंटो से बच्चों की तरह पूछ बैठा था, ‘डॉक्टर, यह कैंसर होता क्यों है… इसका कारण क्या है?’

डॉ. पिंटो ने भगवान यीशु की तस्वीर की ओर इशारा करते हुए कहा था, ‘यही जानते हैं… दरअसल मि. मेहरा जो इनसान भी कैंसर होने का सही कारण ढूँढ़ लेगा उसे तो नोबल पुरस्कार मिलेगा। कैंसर क्या होता है यह तो साइंस जानती है… पर कैंसर क्यों होता है, इसके जवाब में अभी तक अँधेरा है। यह शरीर अपने विरुद्ध क्यों हो जाता है, क्यों यह शरीर आत्महत्या शुरू कर देता है, इसका सही जवाब अभी तक वैज्ञानिकों को नहीं मिल पाया है।’

जिस-जिस को समाचार मिला, वह अस्पताल पहुँचने लगा। हर व्यक्ति को ठीक-ठीक वही-वही बातें बताते-बताते बोरियत सी होने लगती थी। अपनी-अपनी समझ से हर व्यक्ति अपनी चिंता व्यक्त करता था। ‘कौन सी स्टेज है? …’टाइम पर पता चल गया न?’ …’अभी फैला तो नहीं?’ …’अब तो ब्रेस्ट कैंसर का इलाज आसानी से हो जाता है… डॉक्टर क्या कहता है?’ …’मैलिगनेंट है?’ हर किसी का कोई न कोई करीबी रिश्तेदार कैंसर पीड़ित रहा है। मैं तो कुछ ऐसे परेशान हो रहा था जैसे पूनम से पहले कभी किसी को कैंसर हुआ ही न हो। मुफ्त की सलाह देने वाले बहुतायात में थे। – ‘मेहरा जी, हम आपको कहें, आप पूनम जी को रोजाना शहद दिया करें और सरसों के तेल की मालिश करवाया करें। इंशा अल्लाह सब ठीक हो जाएगा… और हाँ चने जरूर खाने को दें।’ यह नजमा थी, हमारी पड़ोसन। भूल गई थीं कि अस्पताल में कम बोलना एक अच्छी आदत समझा जाता है। जाते-जाते ताकीद करना नहीं भूली, ‘मेहराजी, एक बात कहूँ, हमारे पीर साहिब से तावीज बनवा लीजिए, पूनम जी बिल्कुल ठीक हो जाएँगी।’

चंद्रभान की देवी, नजमा जी के पीर फकीर, सुशील और लुईजा का ‘लिविंग गॉड’, और डॉ. पिंटो की छाती पर बार-बार बनता क्रॉस, कार्सिनोमा, कटी हुई छाती, अस्पताल का कमरा सब मुझे भीतर से परेशान किए जा रहे थे।

नवें दिन हम घर लौट आए थे। पूनम की आँखों में एक बेबस सवाल मेरी ओर ताके जा रहा था, ‘वैसे, यह भी कोई जीवन है जी? पराये मर्दों के सामने नंगा होना! पता नहीं कहाँ-कहाँ हाथ लगते हैं। बेकार हो गई जिंदगी तो!’

पूनम के दोनों हाथ स्वयंमेव ही मेरी हथेलियों में आ गए थे। आँखें तो मेरी भी नम हो आई थीं। उसके माथे पर मेरे एक चुंबन ने ही शायद उसे खासी शक्ति प्रदान कर दी थी, ‘नरेन, किसी से भी मेरी बीमारी और ऑपरेशन के बारे में बातें मत किया करो। लोग अजीब सी निगाह से छाती को घूरते हैं।

इतनी बड़ी बीमारी को छुपा जाना चाहती थी पूनम! यहाँ किसी को जुकाम या बुखार हो जाए तो पूरे का पूरा शहर सिर पर उठा लेते हैं… और पूनम! इस भयंकर बीमारी ने एक काम तो किया था। मुझे पूनम के और करीब ला दिया था। मेरी सोच, मेरे कर्मक्षेत्र, मेरे जीवन का केंद्रबिंदु पूनम होकर रह गई थी।

डॉ. पिंटो से पहले तो दोस्तों और रिश्तेदारों ने ही डरा दिया था। – ‘ऑपरेशन के बाद रेडियेशन और कीमोथेरिपी भी करवानी पड़ती है। सारे बाल उड़ जाते हैं। उल्टियाँ कर-करके बुरा हाल हो जाता है’… ‘वैसे ब्रेस्ट कैंसर में तो ‘यूटेरस’ और ‘ओवरीज’ भी निकलवा देते हैं… आपके डॉक्टर ने सुझाया नहीं? …कमाल है!’

डॉ. पिंटो अपने चिरपरिचित अंदाज में ही पेश आए, ‘गॉड इज ग्रेट मिस्टर मेहरा! …आई वुड पुट इट दिस वे कि यूटेरस और ओवरीज निकालने की तो कोई जरूरत नहीं। दरअसल मैं तो कीमोथेरिपी भी नहीं करता, लेकिन सात नोड्स में कैंसर पहुँच गया था इसलिए कीमोथेरेपी देनी ही पड़ेगी। नहीं तो हम केवल टेमॉक्सीफिन गोलियों से ही काम चला लेते।’

‘टेमॉक्सीफिन!’ …मेरे मन में आशा की एक झलक जाग उठी। हो सकता है डॉ. पिंटो यही दवा देने के लिए मान जाएँ… शायद पूनम को कीमोथेरिपी की परेशानियों से बचाया जा सके – ‘डॉ.पिंटो, यह टेमॉक्सीफिन और कीमोथेरिपी में फर्क क्या है?’

‘यू कैन पुट इट दिस वे, कि कीमोथेरिपी की एक माइल्ड फार्म है टेमोक्सीफिन। यह एक हार्मोनल दवाई है। यह दवा शरीर में जाकर फीमेल हार्मोन होने का दिखावा करती है। कैंसर सैल इसकी तरफ अट्रैक्ट होते हैं और इसके कांटेक्ट में आकर मर जाते हैं। इस तरह वह कैंसर को आगे बढ़ने से रोकती है… पर नोड्स में कैंसर पहुँचने पर कीमोथेरिपी जरूरी हो जाती है। अब सोचना यह है कि एड्रियामायसिन दिया जाए या ज्यादा पॉपुलर सी.एम.एफ. की मिली जुली कीमोथेरिपी। एड्रियामायसिन से जो बाल गायब होते हैं, तो वापिस नहीं आते और कई बार यह दिल पर भी बुरा असर करती है। तो हम सी.एम.एफ. ही देंगे।’

कीमोथेरिपी शुरू हो गई। इस बीच बोन स्कैन और अल्ट्रासाउंड और लिवर टेस्ट सब चल रहे थे। डॉक्टर, दवाइयों और बीमारी के नाम से ही दहशत होने लगी थी – ‘डॉ. पिंटो, अब पूनम ठीक हो जाएगी न?…अब दोबारा होने का डर तो नही?’

डॉ. पिंटो की छाती पर फिर से क्रास बना, ‘मैं तो बस इलाज करता हूँ मिस्टर मेहरा, ठीक तो यह करते हैं! बस इनकी पूजा कीजिए।’ फोटो में यीशु मसीह का चेहरा दमक रहा था।

पूजा से पूनम का विश्वास उठता जा रहा था, ‘मैंने तो कभी किसी का बुरा नहीं चाहा, किसी की पीठ पीछे तक बुराई नहीं की, शुद्ध शाकाहारी जीवन जीती हूँ… फिर… यह बीमारी मुझे ही क्यों?’

पूनम का यह सवाल मेरे विश्वास को हिलाने के लिए काफी था। किंतु चंद्रभान किसी और ही मिट्टी का ही बना था। वह मुझे एक महिला के पास ले गया। महिला बैठी सिर हिला रही थी – ‘यह देवी माँ हैं, नरेन! यह चाहे तो कुछ भी हो सकता है।’

यंत्रवत मेरे जैसा तार्किक व्यक्ति भी, उस सिर हिलाती देवी के चरणों में झुक गया। ‘बहुत देरी कर दी तुमने आने में, बेटा। फिर भी यह प्रसाद ले जाओ। भगवान भला करेंगे।’

प्रसाद के अस्त्र से लैस मैं घर लौटा तो सुशील, उसकी पत्नी लुईजा और दो अन्य महिलाएं पूनम के बिस्तर के चारों ओर बैठे पूजा कर रहे थे। ‘पूनम भाभी, आपको अपने में विश्वास पैदा करना होगा… आप केवल ईसा मसीह में विश्वास रखें और पूजा भी उन्हीं की करें।’

‘सुशील भैया, बचपन से जो विश्वास बने हुए हैं, क्या उनसे मुक्ति पाना इतना ही आसान है?’

‘भाभी, यह तो आपको करना ही होगा – मैं तो कहता हूँ कि अगले इतवार आप हमारी प्रार्थना सभा में आएँ और देखें हम कैसे पूजा करते है।’

मैं बोल ही पड़ा, ‘भइए, हमारे घर से बांद्रा तो काफी दूर है। पर यहाँ पास में ही जो चर्च है, पूनम को वहीं ले जाऊँगा।’

‘नहीं नरेन! …आना तो तुम्हें हमारे यहाँ ही पड़ेगा। तुम्हारे घर के पास जो चर्च है वह कैथॅलिक चर्च है। जबकि हम लोग अपने आपको ‘बार्न अगेन’ कहते हैं। हमारा भगवान जीवित भगवान है… ‘लिविंग गॉड’। इसलिए तुम हमारे भगवान में ही विश्वास रखो और मैं तो यहाँ तक कहूँगा कि तुम लोग भी धर्म परिवर्तन करके हमारा धर्म अपना लो… पूनम की बीमारी का इलाज केवल विश्वास ही है।’

बहुत मुश्किल से अपने आपको रोक पाया था। फिर भी मेरे चेहरे की भंगिमा देखकर सुशील अपने साथियों समेत किसी और के जीवन के लिए प्रार्थना करने निकल पड़ा।

शाम को पूनम के लिए सूप बनाया था। कल के कीमोथिरेपी के इंजेक्शन के विचार से ही त्रस्त, पूनम सूप को निगल नहीं पा रही थी। दरवाजे पर घंटी बजी। ‘लीजिए मेहरा जी, हम तो पूनम जी के लिए तावीज बनवा लाए। आप देखिएगा, माशा-अल्लाह पूनम जी भली-चंगी हो जाएँगी… वैसे आप इन्हें गर्म पानी के साथ शहद देते रहिए… आप देखिएगा अल्लाह क्या चमत्कार करते हैं।’

चमत्कार!… कार्सीनोमा… रैडिकल मैसेक्टमी! सपाट छाती! लोगों की नजरें! …चंद्रभान की देवी! …सुशील का बार्न अगेन! नजमा जी का तावीज! डॉ. पिंटो की छाती पर बार-बार बनता क्रॉस! …दर्द के मारे फटता सिर!

चमत्कार! …इसकी आशा तो ऑपरेशन से पहले भी लगाये बैठा था… पर कहाँ! विज्ञान ने चमत्कार की छाती काट दी और बीस नोड्स भी निकाल दिए! कल फिर कीमोथेरिपी।

पूनम भी चमत्कार में कहाँ विश्वास करती है। उसे तो पुर्नजन्म में भी विश्वास नहीं। वह तो आज, इस पल के बाद अगले पल के बारे में नहीं सोचती।

सोचती है तो बस मेरे बारे में… उसे यही गम खाए जा रहा है कि अपने पति का जीवन कैंसर से ग्रस्त करने की जिम्मेदार बस वही है…

पूनम को तो यह भी अच्छी तरह मालूम है कि मैं तो भगवान के अस्तित्व के सामने सदा एक प्रश्नचिह्न लगा देता हूँ… मेरे लिए बस कर्म के सिद्धांत के अतिरिक्त जीवन का कोई अर्थ है ही नहीं।

पूनम देख रही है… अपने पति की स्थिति से पूरी तरह वाकिफ है वो। वो देख रही है कि कैसे उसका पति पूरी श्रद्धा से तावीज बाँध रहा है… कैसे किसी सिर हिलाती देवी के सामने माथा टेककर पूनम के जीवन की भीख माँग रहा है। ‘बार्न अगेन’ ईसाइयों के सुर में सुर मिलाते देख रही है वह। बेबस, लाचार पड़ी, लेटी है पलँग पर!

पूनम की आँखों में बस एक ही सवाल दिखाई दे रहा है… ‘मेरा पति मेरे कैंसर का इलाज तो दवा से करवाने की कोशिश कर सकता है… मगर जिस कैंसर ने उसे चारों ओर से जकड़ रखा है… क्या उस कैंसर का भी कहीं कोई इलाज है?

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