ब्रेकअप - दो | घनश्याम कुमार देवांश
ब्रेकअप - दो | घनश्याम कुमार देवांश

ब्रेकअप – दो | घनश्याम कुमार देवांश

ब्रेकअप – दो | घनश्याम कुमार देवांश

वह जो मुझे खो देने के भय से मुक्त हो गई
दुनिया की सबसे बहादुर लड़की साबित हुई
वह जा रही थी मुझसे दूर हमेशा के लिए
अपनी उदासी से आजाद होकर
मैं उससे लड़ा अपनी पूरी बेरहमी के साथ
हाथों में भय, क्रोध, याचना
और अपार दुख व तनाव के हथियारों को उठाए
मैं दरअसल उसकी आजादी के खिलाफ था
जो अपनी एक मुस्कान तक के लिए मेरे रहमोकरम पर
निर्भर थी
मैं खुश था कि उसके जीवन
में छाया हुआ था बादलों की तरह
मैं जब चाहे उसकी आँखों और
होंठों पर मेघ बनकर बरस सकता था
और जब चाहूँ उसे डुबो सकता था अपने प्यार के
अथाह जल में
कभी-कभी जब वह डूब रही होती थी
मैं किनारे खड़ा मुस्कुरा रहा होता था
उसे तैरना नहीं आता था
ये बात हालाँकि मैं जानता था
फिर भी मैंने ढँक लिया था उसके जीवन में सूर्य को
मैं चाँद तो क्या  
तारों को भी उस तक
बिना अपनी मर्जी के
नहीं पहुँचने देता था
दरअसल मैं उसे
क्रूरता की इस हद तक
प्यार करता था कि उसके वर्तमान तो क्या
अतीत और भविष्य तक को निगल लेना चाहता था
वह जब भी उदास होती मैं उसका हाथ धीरे
से छोड़कर कहता, क्या मैंने तुम्हारी आजादी
छीन ली है
वह कहीं नहीं जाती
वह मेरी छाती पर गाल टिकाए बूँद दर बूँद
रोती-सिसकती
वह मुझे एक गोह की तरह जकड़ती चली जाती
कहती जाती कि तुम मुझे छोड़कर कहीं
चले तो नहीं जाओगे
मैं उसके भोलेपन पर हैरान होता
अपने आप से पूछता क्या यह कभी संभव है
मुझे नहीं पता चला जब वह पहली बार
मेरे बिना मुस्काई होगी
जब वह एक बर्फीले पहाड़ की चोटी पर
दुनिया की ओर बाँहें पसारे खड़ी हुई होगी
जब उसे पहली बार लगा होगा कि जीवन की कल्पना
मेरे बिना असंभव बात नहीं 
मैं सोचता हूँ वह मेरे जीवन का
कितना भयानक दिन रहा होगा
उस वक्त मैं इस बात से बेखबर कहाँ रहा हूँगा
मेरी किसी बेफिक्र नींद में पहली बार उसका हाथ
मेरे हाथ से फिसला होगा
और मुझे पता नहीं चला होगा
वह अपने जूतों में उस समय सुबह-सुबह
अकेली टहलने निकल गई होगी
फूलों पर टिकी ओस उसे देख मुस्काई होगी
और सूरज ने बजाई होंगी तालियाँ
उसकी आजादी की आहट पर
क्या पता उस दिन उसने प्यार को एक लंबी
बीमारी की तरह देखा हो
और सोचा हो उससे मुक्ति के बारे में 
जब उसने आखिरी बार अपने सूखे
होंठों से मेरे माथे पर चूमा था
उस दिन को याद करके आज सिहरन होती है
कि हमें सचमुच कई बार आभास तक नहीं होता उन चीजों का
कि दरअसल वह आखिरी बार जीवन में घट रही हैं
मैं सचमुच नहीं जान पाया था
जब उसने जाते हुए मुझे आखिरी बार मुड़कर
देखा था
वे आँखें आज भी मुझे अपने कंधे पर रखी मालूम होती हैं
मैं उन्हें महीनों पढ़ता रहा लेकिन उनमें
छुपे उस ‘अंतिम’ को नहीं जान पाया
वह यह सब कर पाई क्योंकि वह एक बहादुर लड़की थी
बहरहाल इस कहानी की सीख यही है
कि एक बहादुर लड़की से प्यार करना उतना
ही खतरनाक काम है
जितना कि एक कमजोर लड़की से प्यार करना
अंत में यदि आप गणित में अच्छे हैं
तो प्रमेय लगाकर आसानी से इस नतीजे पर
पहुँच सकते हैं कि
प्यार करना एक बेहद खतरनाक काम है

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