बिना बाप की लड़कियाँ | नेहा नरूका
बिना बाप की लड़कियाँ | नेहा नरूका

बिना बाप की लड़कियाँ | नेहा नरूका

बिना बाप की लड़कियाँ | नेहा नरूका

होली के दिन जब हम सब हमउम्र लड़कियों की आँखें
रहतीं पिचकारियों और गुलाल पर
तब उनकी जीभ लपलपा रही होती
गुजिया के आकार पर
बिलकुल वैसे ही
जैसे प्रेमचंद्र की बूड़ी काकी
अनुमान लगाती हैं कोठरी के भीतर
दही, पूरी, कचौरी का गर्माहट भरा स्वाद
न मिलने पर चाटती हैं वे भी
जूठी थाली
जो छोड़ गए है चचा आधा खाकर
संतोषी माता का व्रत
हर शुक्रवार को रखा जाता
शक्कर के मीठे पराठे
और पनीले दूध के लोभ में
घर में सब चाय पीते थे
केवल उन्हें ही नसीब नहीं थी चाय
चाय पीएँगी तो बाँधने लगेंगी कपड़ा
जल्दी ही करना पड़ेगा खसम का जुगाड़
अमूमन कंजूस और कर्कस अइया के इसी कथन पर
सूख जातीं थीं उनकी बढ़तीं छातियाँ
अठारह साल से पहले इनका ब्याह निपट जाए
घरभर को ही नहीं
गाँवभर को भी थी
उनकी चिंता
बिना बाप की लड़कियाँ थीं वे
स्कूल जातीं
तो उनके साथ स्कूल जाते थे
उनके बब्बा, ताऊ, चच्चा
लग्गा-तग्गा भइया
कहीं वे पढ़ने की जगह कबड्डी तो नहीं खेल रहीं
घर में अइया, महतारी, ताइयाँ, चाचियाँ
गाँवभर की भौजाइयाँ, बहनें…
देती रहतीं उन्हें सीख
लली फूँक-फूँककर पैर रखियो
बिना बाप की लरकिनें बहुत जल्दी बदनाम हो जाती हैं
उन्हें लगता उनके कंधों पर
पुरखों की ढाई किलो की पगड़ियाँ
रखी रहती हैं हरदम
पगड़ियों के बोझ से झुक गए थे उनके कंधे
इसलिए बिना बाप की लड़कियाँ
झुककर चलती थीं
उनके ब्याह पर गाँवभर के आदमी-औरत
गँठबँधना करवा के पाँव पूजने आए
पंडित जी की जेब भर गई रुपयों से
बिना बाप की लड़कियों के हाथ में आ गए
कई जोड़ी बिछिया और बेसर
उनकी विदा पर बहुत रोना-पीटना हुआ
महतारी तो बेहोश हो गई
दर्शन दे गया था उसे
स्वर्ग से आशीर्वाद देता लड़कियों का बाप
मंडप के चारों कोनों मे बैठी औरतें
अइया के साथ पोंछ रहीं थीं आँसू
यह कहते‌…
बिना बाप की लड़कियाँ थीं
चलो आज हिल्ले लग गईं

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