भाई-बहन | हरीशचंद्र पांडे
भाई-बहन | हरीशचंद्र पांडे

भाई-बहन | हरीशचंद्र पांडे

भाई-बहन | हरीशचंद्र पांडे

भाई की शादी में ये फुर्र-फुर्र नाचती बहनें
जैसे सारी कायनात फूलों से लद गई हो

हवा में तैर रही हैं हँसी की अनगिनत लड़ियाँ
केशर की क्यारियाँ महक रही हैं

याद आ गई वह बहन
जो होती तो सारी दिशाओं को नचाती अपने साथ

जिसका पता नहीं चला
गंगा समेत सारी गहराइयाँ छानने के बाद भी…

और बहन की शादी में यह भाई
भीतर-भीतर पुलकता
मगर मेंड़ पर सँभलता, चलता-सा भी

कुछ-कुछ निर्भार
मगर बगल का फूल तोड़े जाने के बाद पत्ते-सा
श्रीहीन…।

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