बेटे के लिए विदा-गीत | एकांत श्रीवास्तव
बेटे के लिए विदा-गीत | एकांत श्रीवास्तव
धरती पर पाँव धरे बिना
गुँजाए बिना अपनी किलकारी से ब्रह्मांड
खेले बिना मेरी गोद में
सुने बिना मेरे होंठों से अपना नाम
मेरे बेटे, तुम चले गए कितनी दूर
बादलों की पालकी में बैठकर
लपेटकर सफेद कपड़े में
अगस्त की इस गीली सुबह
तीन फुट गहरी धरती के बिछौने पर
रखता हूँ तुम्हें
दो मुट्ठी मिट्टी डालकर
करता हूँ विदा
चौमास की झड़ी के बाद
उग आएगी कल यहाँ हरी घास
खिलेंगे गुलाबी फूल
उन फूलों की आँखों से
तब क्या तुम देखोगे
इस दुनिया को पहली बार!