बेघर रात
बेघर रात

स्थगित होती हूँ 
ओ रात ! 
हमारे बीच अभी जो वक्त है 
फँसा 
चट्टान की तहों में जीवाश्म 
उसे छू 
सहला

यह जो हमारे बीच चटक उजला दिन है 
अपराधी सा 
बस के बोनट पर सफर करता 
पसीने में भीगता 
मुँह लटका उतरता 
गलत स्टॉप पर 
पछताता 
इसे छाया दे !

रक्त और धड़कन हो जा 
दाँत दिखा मुँह खोल 
मैले नाखून देख 
लेट जा बेधड़क 
फूला पेट ककड़ी टाँगें फैला क्षितिज में 
ओ रात ! 
खुल जा 
मत हिचक 
चहक बहक महक 
आदिम नाच की थिरकन सी 
लहक

चुप्पी हमारे बीच 
भूख की लत से परेशान 
दवाओं से नहीं टूटती 
नहीं आती वापस जंगली हँसी 
अड़ियल है अड़ियल 
जिनके दिन नहीं होते घर जैसे 
चाहती क्या उनसे हो 
ओ बेघर रात !

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