लाल पीली और नीली रोशनियाँ… गोल गोल छोटे बड़े रंगीन शीशे के चहुँ ओर लटकते हुए कुमकुमे… कमरे में बैठे सभी पुरुषों एवं महिलाओं के जीवट ठहाके… और उनके कपड़ों में बस दो ही रंग मुख्य रूप से उभरते दिखाई दे रहे थे… लाल और काला!

औरतों के लाल ब्लाउज, तिकोने नीचे कट वाले गले जो औरतों के औरत होने की भरपूर गवाही दे रहे थे। कूल्हों पर फँसी हुई स्कर्ट… बस लाल और काले ड्रेस। पुरुषों के काले सूट जो कि खुशी और गम दोनों अवसरों पर पहन लिए जाते हैं। गले से लटकी लाल धारीदार या सादी लाल सपाट टाइयाँ बिलकुल रेणुका के जीवन की भाँति सपाट।

जिम मार्शल अपने चहेते ग्रुप के साथ घिरा बैठा था। रेड वाइन, व्हाइट वाइन और उकड़ूँ बैठा छोटा, मोटा सा व्हस्की ऑन-दि-रॉक्स का आधा खाली गिलास, जिम के सामने पड़ा हुआ था। उसके चेहरे का सफेद रंग लाल हो गया था और सर्दियों में पसीने के कतरे मुँह पर उभर रहे थे। अर्थशास्त्र और राजनीति के दाँव-पेच, इलेक्शन जीतने के उपाय के घोर विवाद चल रहे थे। जिम की आवाज से आत्मविश्वास झलक रहा था क्योंकि सांसद का चुनाव हारने के बाद वह अभी अभी लंदन असेंबली का इलेक्शन जीत कर आया था। विरोधी पार्टी के बड़े नामी काउंसलर को हराया था और अब फिर से एम.पी. का इलेक्शन लड़ने का प्लान बना रहा था। संगीत की आवाज मंद पड़ गई थी जिम की आवाज के सामने। जिम आकाश का पंछी बना ऊँचे आसमानों में तैरता हुआ सबको ऊपर से नीचे देख रहा था पर उसकी दृष्टि के दायरे में रेणुका कहीं नहीं फिट हो पा रही थी।

रेणुका अपनी ओर से सज-धज कर बिजली गिराने को तैयार हो कर आई थी – मखमल का लाल कोट पहने, बालों को ऊँचा करके बांधे और एक लाल गुलाब बालों में सजा कर जिसका लाल रंग उसकी लाल लिप्सटिक से मैच कर रहा था। वह कमरे में आते ही ठिठक गई। होटल का यह कमरा इतना सजा सजाया, कार्यकर्ताओं, काउंसलरों एवं मेंबर्स से खचाखच भरा हुआ था। कमरा भरा हुआ था पर रेणुका अपने को खाली सा महसूस करने लगी। ये सारी सजावट ये तमाम जगमगाहट उसकी सहायता के बगैर हो कैसे गई… उसको भनक भी नहीं पड़ी और ये सब हो गया? पहले तो जिम उसकी सलाह के बिना कुछ भी नहीं करता था। दरअसल जिम के सभी कामों को केवल रेणुका ही अंजाम देती थी।

इतना बडा काम – ना तो उसकी कोई सहायता माँगी और ना ही कोई बात की…! वह तो जिम की रग रेशे से वाकिफ थी। जिम की भलाई का ध्यान रखते हुए कैंपेनिंग की तैयारी करना और सबको आदेश देना की कौन किस टीम में होगा और किस सड़क पर जाना है… क्रिसमिस की पार्टी में कितने लोग आएँगे… कौन विशेष अथिति बनेगा… ये सब निर्णय तो वह ही लिया करती थी। जिम की चुनाव में हुई हार के बाद जैसे वह जिम को भी हार चुकी थी… वह दबाव सा महसूस करने लगी। आज वह सब कुछ हो गया जिसके बारे में वह सोच भी नहीं सकती थी। फिर भी उसने अपने आपको सँभालते हुए, गर्दन ऊँची की और जिम के निकट पहुँच गई। जिम की एक तरफ उसकी पार्टनर बैठी थी तो दूसरी तरफ पार्टी की राष्ट्रीय सचिव। वह पार्टी सचिव के साथ बातचीत में मशगूल था। हारी हुई रेणुका ने कहा, “हैलो जिम…। कैसे हो?” जिम ने केवल शिष्टाचार निभाते हुए कहा, “हैलो रेणुका, बहुत दिनों बाद दिखाई दी हो। सब ठीक है।” और वह वापिस पार्टी सचिव की ओर मुड़ गया।

गीली आँखें लिए रेणुका वहाँ से वापिस मुड़ चली…। एक वो भी जमाना था जब सबके बैठने का क्रम रेणुका तय किया करती थी। आज उसे स्वयं नहीं पता था कि उसे बैठना कहाँ है। वक्त कितनी तेजी से बदल जाता है।

तेजी जिम के व्यक्तित्व का एक अटूट हिस्सा है। रेणुका को याद है कि जिम कैंपेनिंग के दौरान बहुत तेज चलता था… लगभग दौड़ने लगता था…

उस दिन भी वह इतना ही तेज चल रहा था। रेणुका लगभग दौड़ ही रही थी उसको पकड़ने के लिए।

पर उस तक पहुचना असंभव लग रहा था। दौड़ते दौड़ते चिल्ला चिल्लाकर सवाल करती जाती थी कि अब किस सड़क पर कैंपेनिंग करने जाना है। यही प्रश्न पीटर उसे बार बार बगैर दौड़े पूछ रहा था की अब किस सड़क पर कैंपेनिंग के लिए पूरी टीम को ले चलूँ…?

जिम मारशल हर शनिवार और रविवार को कैंपेनिंग रख लेता। बाल बच्चे तो थे नहीं जिनकी कोई जिम्मेदारी होती। पत्नी अपने कामों में व्यस्त होती, होम्योपैथी कॉलेज से होम्योपैथी की डिग्री ली हुई थी। जो कलाएँ हमारे यहाँ से दम तोड़ चुकी हैं वो अभी ब्रिटेन में जीवित हैं। होम्योपैथी से अच्छी खासी आमदनी हो जाती है। पर इसके बावजूद भी उसकी पत्नी समय निकालकर कभी कभी कैंपेनिंग कर लिया करती। किंतु दूसरे एक्टिविस्ट आनाकानी करते छुट्टी के दिन घर घर दरवाजा खटखटाने से। जिम मार्शल बिगड़ जाता कि रेणुका उसके लिए दूसरों को क्यों नहीं मना लेती…!

हर राजनीतिक पार्टी का दारोमदार बहुत कुछ उसके कार्यकर्ताओं पर ही निर्भर होता है। जितने सक्रिय मेहनती और पार्टी से अकीदत रखने वाले कार्यकर्ता होते हैं उतनी ही पार्टी लोकप्रिय बनती है।

रेणुका ने आते ही सारे कार्यकर्ताओं की एक सूची बनाकर फौज में भरती करने जैसी पल्टन तैयार कर ली थी। शीमा वगैरह देखती रह गईं कि रेणुका कैसे काम करती है… कितनी लगन से… काम के बीच कैसे मस्त होती है। नाक को सुकेड़ कर उसके ऊपरी हिस्से पर बड़ी बड़ी चुनन और उसी से लगी माथे पर खड़ी खड़ी मोटी मोटी लाइनें, कभी नाक को फुला लेती तो कभी पिचका देती पर साफ पता लगता कि भीतर कोई योजना बन रही है जो कि फौरन कागज पर उतर आएगी और उसके अनुसार सबको सक्रिय सड़क पर घर घर भागना पड़ेगा। एक धुन रहती रेणुका को कि जैसे भी हो जिम का काम पूरा हो जाए। अधिक से अधिक वोटर्स की शनाख्त हो जाए और चार वर्षों के बाद फिर से जिम मार्शल ही एम.पी. बने। चाहते तो सभी यही थे पर रेणुका की तरह किसी ने जान की बाजी नहीं लगाई हुई थी।

जब तक रेणुका ऑफिस नहीं आती तो सबकी बातों का विषय वही होती। कोई तो आँख मारकर उसकी बातें करता तो कोई होठों पर हलकी सी मुस्कराहट जमाकर और तो कोई भोंडे अंदाज में आवाज कसकर। जैसे ही वो आ जाती तो सब उसी से बातें करने लगते ऐसे जैसे की इतनी देर से खामोश बैठे हों उसकी प्रतीक्षा में और उससे बातें करने को बेचैन… या राजनीतिक चर्चा में व्यस्त हों।

पाखंड का भी एक अद्भुत स्थान होता है राजनीति में जो की उसका अटूट अंग समझा जाता है – झूठ बोलना भी बुरा नहीं समझा जाता। झूठ बोलकर कोई काम कर जाना राजनीति की दुनिया में स्पिन कहलाता है। कार्यकर्ताओं में से शायद ही उसे कोई पसंद करता हो पर उसे क्या फिक्र वो तो जिम की ही पसंद बनकर रहना चाहती थी। सब से पंगा लेने को तैयार। जिम को यह सब अपनी सुविधा के अनुसार लगता था। वह भी उसे अपनी ढाल बनाए हुए था।

ढाल तो वह थी… वार भी करती थी पर डाँट भी जी भरकर खाती थी। ऐसा लगता जैसे जिम ने उसे गलती करने का हक नहीं दिया है। एक बार तो जिम गुस्से से पागल हुआ जा रहा था …वह कुछ कैनवस शीट्स लाना भूल गई थी। आदत तो उसने स्वयं ही खराब की थी। हमेशा फालतू शीट्स रख लाती थी। उस दिन बिलकुल सही हिसाब से लाई थी पर जिम को अपनी मर्जी से काम करने देना बिलकुल पसंद नहीं था। निर्णय वह स्वयं ही लेता। गुस्से में उसको ‘यू ईडियट’ तक कह दिया।

मगर रेणुका ना जाने किस मिट्टी की बनी है। उसे जिम की कोई बात बुरी ही नहीं लगती – फिर चाहे वह प्यार से कहे या डाँट से। वह बस ढिठाई से हँसती रही। कुछ लोगों को बुरा भी लगा। उन्हें महसूस हुआ कि इतनी बेइज्जती के बाद वह पार्टी छोड़ जाएगी। मगर दूसरे ही दिन वह फिर से मौजूद थी। कुछ लोगों ने टोह लेने की कोशिश की तो वो भूल चुकी थी कि जिम ने उसकी बेइज्जती की भी थी। पुजारन के शब्दकोश में बेइज्जती जैसा शब्द होता ही नहीं। जब किसी को देवता मान ही लिया तो फिर बुरा क्या मानना… यही उसकी सोच थी।

अगस्त की छुट्टियों के बाद की पहली कैंपेनिंग थी। वह हमेशा की तरह जिम जिम करती उसके आगे पीछे भाग रही थी। मगर आज वह पीछे मुड़ कर देखे बगैर ही ‘यस रेणुका… यस रेणुका’ कहता जाता और भागता जाता। जब उसने तीसरी बार आवाज दी तो जोर से ‘शट-अप’ की गूँज चारों ओर फैल गई और सड़क बदलने का समय आ गया। सब चुप थे। कोई भी तैयार नहीं था ‘शट-अप’ सुनने को। सभी बहुत सतर्क चल रहे थे जैसे बस भागने वाले हों।

जिम मार्शल छोटे से कद का लाल टाई लगाए… यह लाल रंग की टाई ही उसकी राजनीतिक पार्टी की प्रतीक थी वरना व्यवहार तो उसका नादिरशाह जैसा था। वो गुस्से में दूसरी सड़क की ओर चल पड़ा। सड़क के बीचों-बीच आइलैंड था… टकराकर गिरते गिरते बचा…। परंतु रेणुका उसे सँभालने के लिए वहाँ पहुँच चुकी थी।

सँभालना तो सभी चाहते थे पर रेणुका ने जिम मार्शल और दूसरे कार्यकर्ताओं के बीच ऐसी दीवार खींच दी थी की उसको फलांगना संभव नहीं था। कोशिश सभी करते पर रेणुका बीच में आ जाती। एम.पी. से निकटता कौन नहीं चाहता था – शीमा तो सब कुछ करते करते पीछे धकेल दी गई थी।

शीमा पुजारन नहीं कुछ और बनने आई थी। वह असली सोशलिस्ट सोच की थी। इलेक्शन लड़ कर लोकल सरकार में काम के द्वारा लोगों की सहायता करना चाहती थी। पर रेणुका ने तो सब मलियामेट कर दिया था। जब से रेणुका आई थी सारे कामों पर धरना देकर बैठ गई थी। चिढ़ते तो सभी थे उससे पर जिम मार्शल से डरते भी थे उसका काम करने का मतलब था डाँट डपट – बेइज्जती।

छोटा सा दफ्तर जो की पार्टी के दबदबे वाले क्षेत्र में ही था। जहाँ अधिकतर वोट इसी पार्टी को मिलते थे। दफ्तर इतना छोटा था कि चाय बनाने का छोटा सा कोना टॉयलेट के बगल में बनाना पड़ा था। शीमा कभी भी वहाँ की चाय न पीती उसको घिन आती वहाँ चाय बनाने में।

रेणुका ने आते ही वह कोना भी सजा दिया और जिम के लिए अलग से चाय का मग और गिलास लाकर रख दिया। किंतु जिम न तो वहाँ की चाय पीता और न ही पानी। पानी भी मिनरल वॉटर की बोतल से सीधे मुँह लगा कर ही पी लेता। जब उसको प्यास लगती तो अपने पुराने चमड़े के बैग से जैसा पुराने दिनों के डाकिए लेकर आया करते जिसमें दसियों खाने होते और हर खाने में शायद हर घर की कहानी होती या बादामी रंग के पोस्ट कार्ड।

जिम मार्शल के बैग के हर खाने में शायद रेणुका के लिए डाँट, फटकार और गालियाँ होतीं। जब से रेणुका आई थी उसने एक छोटी सी मेज और फोल्डिंग कुर्सी लाकर एक कोना जिम के लिए सेट कर दिया था। दूसरों के लिय जगह और तंग हो गई थी पर इससे क्या उसका भगवान तो कोने में सजा दिया गया था। उसी पर पानी की प्लास्टिक की पारदर्शी हलके से नीले रंग की बोतल भी रख दी थी गहरे नीले रंग का ढक्कन सील लगी होने के कारण जरा कठिनाई से खुलता। जिम बोतल उठाता ही कि रेणुका दौड़कर पहुँच जाती और बोतल की सील खुद तोड़ती। सील सख्त होती इसलिए ढक्कन पर इतनी ताकत लगाती कि हाथ के साथ साथ पूरा शरीर भी ऐंठ जाता। बोतल की सील टूटने की आवाज आती… पानी गट गट करता गिलास में गिरता गिलास को एक हाथ में उठाकर दूसरा हाथ भी नीचे लगाकर झुक कर अपने भगवान को समर्पित कर देती।

जिम पेपर पर नजरें गड़ाए पानी का गिलास ऐसे हाथ मे लेता जैसे बड़ा एहसान कर रहा हो पानी का गिलास पकड़कर। प्यास तो सभी को लगी होती मगर उनके पास प्यास बुझाने वाली रेणुका नहीं होती। जिम पानी पीता तो गट गट की आवाज नहीं आती खामोशी से पानी सूत लेता आस पास लोगों को एहसास भी नहीं होता की पानी पी रहा है। ब्रिटेन के वासी हर काम खामोशी से बिना आवाज किए कर डालते हैं। भारत में भी तो खामोशी से आ गए थे और लग भग दो सौ साल तक खामोशी ही से अंदर से खोखला करते रहे फिर भी टिके रहे।

ऐसे ही चाय पानी शराब सब बिना आवाज के पी जाते हैं। गुस्सा भी… पर इनका मानना होता है कि ‘डोंट गेट एंग्री – गेट ईवेन’ यानि कि गुस्सा कभी ना करो… बस बदला ले लो… कुछ देशों में कुछ लोग चाय को भी प्लेट में डालकर ऐसा सुड़कते हैं कि आस पास सबको पता चल जाता है कि पड़ोस में क्या हो रहा है…! चुनाव के दिनों में भी ये लोग आवाज नहीं निकालते। कहीं न लाउड-स्पीकर होता है और न ही सड़क पर चिल्ला चिल्लाकर भाषण देकर अपना मुद्दा बयान किया जाता हैं। झूठे वादे न करें तो जीत कैसे होगी…! जो जितना बड़ा झूट बोल ले और वो झूट न लगे तो वही ‘झूठा सच’ होता है और इसी बात पर सत्ता बदल जाती है। रेणुका के लिए झूठ का शब्द जिम ने रिजर्व कर लिया था हर बात पर ‘यू आर लाइंग’ कह देता वो हँसते हुए कहती ‘नो जिम आई ऍम नॉट’। पर इसी झूठ के सहारे तमाम साथियों को पीछे धक्का दे चुकी थी।

“रेणुका, क्या हम चलने के लिए तैयार हैं?”

“यस जिम, हम तैयार हैं।”

“पोस्टल वोट्स के फॉर्म्स रख लिए…?”

“हाँ जिम…”

“क्या काफी लोगों के नामों की लिस्टें रख ली हैं…?”

“यस जिम…”

ऑफिस में सुनने वाले परेशान होते थे की ये सारे काम रेणुका कैसे पहले ही से कर के रख लेती है…!

वे कहते अगर रेणुका जिम के साथ रह गई तो अगली बार फिर से जिम जीत जाएगा। रेणुका की भी यही तमन्ना थी की जिम फिर से जीत जाए। पहले तो इसलिए जीत गया था की दूसरी पार्टी का एम.पी. ही नाकारा था दूसरी बार जो भी जिम के विरोध में खड़ा किया गया… टिक ना सका।

जिम मार्शल की जीत रेणुका की जीत होती… कितना खुश होती… केक और मिठाई बाँटती, फूल निछावर करती…

चौथे इलेक्शन की तैयारियाँ जोरों पर थीं। तैयारियाँ तो हमेशा ही जोरों पर होती है मगर इस बार जीतने के मामले में कुछ शंकाएँ जताई जा रही थीं… समस्या कुछ गंभीर सी लग रही थी। रेणुका के होते किसकी हिम्मत हो सकती है जो जिम को नीचा दिखा सके।

वह चिंतित थी जब जिम मार्शल पर अधिकांश कागज का गलत इस्तेमाल करने का आरोप लगाया गया था। सब से बार बार सफाई दे रही थी कि जिम तो अपने वासियों को पत्र लिखता है तो इस पर क्यों ये आरोप लगाया जा रहा है। जिम से बढ़कर ईमानदार तो कोई और एम.पी. है ही नहीं। जिम तो समय के मामले में भी कितना सतर्क है। वो अपने काम को जितना समय देता है और कोई मिनिस्टर या एम.पी. नहीं देता।

दूसरे सांसदों पर तो एक और घर बना लेने का भी आरोप लगाया गया है कि उन्होंने यह सूचना सार्वजनिक नहीं की। पर जिम उन लोगों के मुकाबले में तो साफ सुथरा है। रेणुका जिम के साथ उसके घर नहीं जाती पर उसकी देखभाल घर गए बिना ही इतनी कर देती की उसको घर जाने की आवाश्श्यकता थी ही नहीं। काम से सीधी जिम के आफिस आ जाती। कभी कभी उसका पति मालूम करने आ जाता की वो ठीक ठाक है या हो सकता है उसको रेणुका का यहाँ इतना लंबा बैठे रहना परेशान करता हो …रेणुका को क्या परवाह …एम.पी. के सामने पति जैसी निकृष्ट चीज की भला क्या मजाल…!

मई के पहले सप्ताह में चुनाव हुए और जिम थोड़े से वोट्स से हार गया। रेणुका मचल गई कि मैं फिर से गिनती करवाऊँगी… ये संभव नहीं कि जिम हार जाए। जिम मना करता रहा पर वो न मानी। दुबारा गिनती हुई इस बारी मालूम हुआ कि वो एक और अधिक वोट से हारा था। रेणुका जोर जोर से रोने लगी बड़बड़ाती भी जाती थी कि ये असंभव है ऐसा हो ही नहीं सकता… जिम हार नहीं सकता। जिम कभी नहीं हार सकता। वह केवल हरा सकता है। उसको जिम ने कंधे से पकड़ कर समझाना चाहा पर उसकी तो हिचकियाँ बँधी हुई थीं।

आज होटल के इतने भरे हुए कमरे में जहाँ रोशनियों की बारिश हो रही थी… “साइलैंट नाइट, होली नाइट / ऑल इज काम, ऑल इज ब्राइट” जैसा क्रिसमस गीत मीठे सुरों में हर ओर फैला हुआ था। रेणुका के भीतर क्या तूफान चल रहा था किसी को नहीं मालूम हुआ।

वह भीतर आई। उसकी समझ में नहीं आ रहा था की वह किधर जाए? उसकी वी.आई.पी. वाली सीट पर तो जिम ने किसी और को बैठाया हुआ था। और दूसरा कोई उसको अपने पास बैठने को आमंत्रित भी नहीं कर रहा था। सभी अनजान थे। वो अपना बड़ा सा काला हैंड बैग लटकाए हुए जिसमें वह जिम की एपांइटमेंट डायरी, उसके दसियों पेपर, उसके लिए सैंडविच और फालतू कैनवैसिंग शीट्स भरकर चला करती थी – जो कि इतना बोझ होने के बावजूद भारी नहीं लगता था… आज जैसे उसी खाली बैग के वजन से उसके कंधे झुके जा रहे थे। धीरे धीरे चलती हुई बाहर जाने वाले दरवाजे के पास वाली मेज पर अकेली आ कर बैठ गई।

आज रेणुका जी भर कर जोर जोर से रोना चाह रही थी। क्योंकि आज वह तो हार गई थी मगर जिम अपनी जीत का जश्न नए दोस्तों के साथ मना रहा था… भला ऐसे में उसे चुप कौन कराएगा…?

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