बदल गए हैं गाँव 1
बदल गए हैं गाँव 1

सिमटे स्नेह टूटते रिश्ते कितने बदल गए हैं गाँव!
परदेशी की बाट जोहती आँखें अब हो गई कहानी,
कोयल-मोर-पपीहे की वह टेर कहीं खो गई सुहानी
अब मुड़ेर से नहीं सुनाई देता है कौवे का काँव।

वे रिश्तोंवाले संबोधन भी देते हैं नहीं सुनाई,
भाईचारा-प्यार-मोहब्बतवाली बातें हुईं पराई
मधुर स्नेह-संबंधों में कब जाने कौन अड़ा दे पाँव।

सूखे ताल-तलैया-पोखर पनघट पर छाई वीरानी,
सूनी पड़ी हुई चौपालें अब अलाव की बात पुरानी
कहाँ गईं छितवन की छाँहें, उस बूढ़े बरगद की छाँव।

रिश्ते-नातों की बातों पर हो जाती फीकी मुस्कानें,
बात-बात पर पड़ जाते हैं पीछे लोग मुट्ठियाँ ताने
कहाँ बटोही करे बसेरा कोई नहीं ठिकाना-ठाँव।

चले गए जो शहर गाँव की यादें उनको नहीं सतातीं,
घरवाले रो-रोकर चाहे लिखवाए पाती पर पाती
भूल गए ममता का आँचल दादा जी के दुखते पाँव।

नहीं भागता है मीलों मन जंगल-टीले-नदी किनारे,
सूने खेत-गली-चौराहे पेड़ खड़े किस्मत के मारे
सूखी नदी रेत में जर्जर पड़ी सिसकती डोंगी नाव।

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