बदल गई जिंदगी | रमेश पोखरियाल
बदल गई जिंदगी | रमेश पोखरियाल

बदल गई जिंदगी | रमेश पोखरियाल – Badal Gaee Jindagi

बदल गई जिंदगी | रमेश पोखरियाल

वह एक बच्चों का स्कूल था। छोटे-छोटे बच्चों का। नर्सरी से लेकर पाँचवीं तक। बच्चे जितने छोटे, जिम्मेदारी उतनी अधिक। कहीं चोट न लगा बैठें। शरारतें करते हुए अपना नुकसान न कर लें। खाते हुए गले में कोई चीज न फँसा लें, वगैरह-वगैरह। स्कूल प्रशासन की जिम्मेदारी बड़ी थी इसलिए अध्यापिकाओं के साथ-साथ तीन-चार आया भी रखी गई थीं।

आया की भर्ती के समय विशेष ध्यान रखा जाता। आया स्वयं भी बाल-बच्चों वाली हो तो बहुत अच्छा। ऐसी महिला को बच्चों की ममता भी होती और अनुभव भी।

मध्याह्न अवकाश में बच्चे दौड़ते-भागते स्कूल में लगे झूलों की ओर जाते तो उनके गिर कर चोटिल होने की संभावना बनी रहती। उसी वक्त आयाओं का काम बहुत कठिन होता। नर्सरी से दूसरी-तीसरी कक्षा में पढ़ने वाले बच्चों की देखभाल की बहुत आवश्कता थी। इसलिए मध्यावकाश में ये महिलाएँ तत्परता से बच्चों के चारों तरफ घूमती रहती।

सारी सावधानी के बावजूद एक दिन छुट्टी के समय भागते हुए एक बच्चा ठोकर खाकर गिर पड़ा। माथे पर चोट लगी और खून बहने लगा। एक आया जो अन्य बच्चों को सँभालती दूर खड़ी थी, दौड़कर आई और दूसरी आया से छीन उसे गोद में उठा लिया।

उसके आँसू बहने लगे। बार-बार वह उस बच्चे के सिर को सहलाती और रोती जाती।

‘इसी का बच्चा होगा शायद।’ अपने बच्चे को लेने आई रश्मि ने सोचा। उस आया का रोना सुन उसका दिल पसीज गया। बेचारी गरीब औरत, बैठे-बिठाए ये मुसीबत उसके सिर पर आ पड़ी। महिला की वेश-भूषा से वो विधवा जान पड़ती थी।

‘बेचारी का बच्चा गिर कर चोट खा गया।’

रश्मि ने पास खड़ी दूसरी अभिभावक से कहा तो उसने भी हाँ में हाँ मिलाई।

उसे कुछ मदद की आवश्यकता हो, यही सोच कर रश्मि उसकी ओर चल दी।

‘ज्यादा चोट तो नहीं आई बच्चे को?’ उसने आया से पूछा।

‘पता नहीं मैडम, लेकिन देखो तो कितना खून बह रहा है।’ और वह अपने आँसू पोंछने लगी।

रश्मि उससे बात कर ही रही थी कि एक महिला उस ओर जैसे झपटती हुई सी आई।

‘क्या हो गया मेरे बच्चे को?’ और उसने आया की गोद से छीन उसे गोद में उठा लिया।

‘कैसे गिर गया ये?’ उसने आया से पूछा।

जवाब में आया ने क्या कहा वह रश्मि के लिए इतना महत्वपूर्ण नहीं था। जितना कि उसे ये जानकर आश्चर्य हुआ कि ये बच्चा इस आया का नहीं था।

महिला अपने बच्चे को लेकर चली गई। आया के आँसू तब तक भी थमे न थे।

‘ये बच्चा किसका था?’ रश्मि अपनी उत्सुकता न दबा पाई।

‘बच्चे तो भगवान का रूप होते हैं मैडम। वह सबके होते हैं।’ और वह आँसू पोंछती धीरे-धीरे गेट से बाहर निकल गई।

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रश्मि का बेटा माँ को ढूँढ़ते हुए उसके पास ही आ खड़ा हुआ था। उसकी उँगली थामे वह भी स्कूल से बाहर निकल आई लेकिन मन में ढेरों प्रश्न थे।

बच्चों का दर्द यूँ तो सभी को होता है लेकिन किसी दूसरे के बच्चे की परेशानी देख इतना अधिक द्रवित होना रश्मि ने पहली बार देखा था।

कुछ ही दिनों बाद रश्मि की मुलाकात अपने पुत्र की कक्षाध्यापिका से हो गई। इतने दिनों से मिलते-मिलते दोस्ताना संबंध हो गए थे दोनों के। रश्मि ने बीते दिन की घटना उसे सुनाई।

‘अच्छा फ्यूँली की बात कर रही हो तुम!’ अध्यापिका ने छूटते ही कहा।

‘क्या करें बहुत ही अभागन है बेचारी।’ और उन्होंने फ्यूँली की कथा-व्यथा रश्मि के सामने रख दी।

फ्यूँली, जैसा उसका नाम था वैसे ही गुण। दिनभर हँसती खिलखिलाती रहती। सुदूर पहाड़ी गाँव की रहने वाली फ्यूँली माता-पिता की इकलौती संतान थी। पिता की अपनी दो-चार भेड़ बकरियाँ थी और थोड़ी सी खेती की जमीन बस घर का गुजारा चल जाता।

फ्यूँली सत्रह वर्ष की हुई तो माता-पिता को उसके विवाह की चिंता हुई। अल्हड़ फ्यूँली का तो अब तक बचपन भी न गया था। माँ घर का काम सीखने को कहती लेकिन पहाड़ी नदी की धारा के समान उछलते कूदते बहती फ्यूँली माँ की बात पर ध्यान ही न देती।

लेकिन फ्यूँली घर का काम न भी सीखती तब भी उसका विवाह तो करना ही था। उनके समाज में लड़कियों को बहुत दिनों तक अविवाहित रखने का रिवाज नहीं था।

फ्यूँली की शादी हो गई। लड़का विधवा माँ का इकलौता बेटा। फ्यूँली के पिता की तरह बकरियाँ पालता और उसी से उसकी आजीविका चलती। नाम था उसका सुंदर। जैसा नाम का सुंदर वैसे ही आचार व्यवहार का भी।

विवाह के कुछ दिन बाद फ्यूँली से खाना बनाने को कहा गया तो उसने दाल जला डाली, सब्जी-कच्ची ही रह गई। आटा भी गीला हो गया। अनुभवी सास समझ गई कि माँ-बाप ने सचमुच ‘फ्यूँली’ की तरह ही पाला है।

लेकिन वह गुस्सा न हुई न ही आपा खोया, धीरे-धीरे फ्यूँली को सब कुछ सिखा दिया और कुछ ही समय में फ्यूँली सफल गृहणी बन गई। जीवन हँसते खेलते गुजरने लगा। गरीब पिता की बेटी के मन में इतनी आशाएँ अपेक्षाएँ तो थी नहीं कि वह दुखी होती उसने तो जो मिल गया उसी में खुश रहना सीखा था।

शादी के एक वर्ष पश्चात उसने एक बेटी को जन्म दिया व तीसरे वर्ष पुत्र को। परिवार पूरा हो चुका था। सब खुश थे। अपने में मस्त थे, लेकिन तभी एक ऐसी घटना घटी जिसने सबके जीवन को हिला कर रख दिया।

फ्यूँली के पति के पास बकरियाँ थी तो साथ में उनके बच्चे भी थे। बकरी का एक बच्चा उसी दिन पैदा हुआ जिस दिन फ्यूँली का बेटा एक वर्ष का हुआ सुंदर उसे बहुत प्यार करता और प्यार से उसे सोनू कह कर बुलाता।

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एक दिन सुंदर जब बकरियों चरा रहा था तो उसने देखा सोनू कहीं आसपास नहीं है। बहुत ढूँढ़ने पर एक खाई में किसी पेड़ की पत्तियाँ खाते मिला। सोनू उस खाईं में उतर तो गया था लेकिन अब ऊपर नहीं आ पा रहा था। जरा सा पैर फिसलता और वो खाईं में जा गिरता। उसी को बचाने की कोशिश में सुंदर गहरी खाईं में जा गिरा और फिर कभी न उठा।

फ्यूँली की तो जिंदगी ही बदल गई। दो छोटे-छोटे बच्चे और बूढ़ी सास की जिम्मेदारी सिर पर आन पड़ी। कभी मन होता कि इसी खाईं में कूदकर वह भी जान देदे और चली जाय अपने सुंदर के साथ हमेशा के लिए। लेकिन कहाँ संभव था ये भी। बच्चों को पालने के लिए फ्यूँली ने कमर कस ली। बकरियों की जिम्मेदारी भी अब उसके सिर पर थी तो घर के प्राणियों को पालने की भी। धीरे-धीरे फ्यूँली ने सब सँभाल लिया। अल्हड़ किशोरी से अचानक ही वह समझदार महिला बन गई थी।

इकलौते बेटे के जाने का गम सुंदर की माँ बहुत दिन तक न सह पाई और एक वर्ष बीतते-बीतते वो भी चल बसी। फ्यूँली के सिर से अब एक बुजुर्ग का साया भी उठ गया था। अब फ्यूँली दो बच्चों के साथ इस दुनिया में अकेली रह गई थी।

बच्चे बड़े हुए तो उसने उन्हें स्कूल में भेजा। सुंदर और अपनी तरह अनपढ़ नहीं रखना चाहती थी फ्यूँली उन्हें। और फिर वह हादसा हुआ जिसने उसकी जिंदगी को ही बदल दिया।

उस वर्ष बहुत बारिश हुई। कहते हैं पिछले कई सालों में इतना पानी नहीं बरसा। वर्षा होने से कई फायदे थे तो नुकसान भी कम नहीं था। कहते हैं न ‘अति सर्वत्र वर्जयेत्’। इतने वर्षों से कम वर्षा में रहने के आदी लोगों ने नदी-नालों, गाड-गधेरों में भी घर बना लिए थे। पहाड़ों के घर भी अब पहले जैसे न बनते। पत्थर और मिट्टी गारे की जगह, ईंट और बजरी ने ले ली थी। वर्षा अधिक हुई तो नुकसान भी बहुत हुआ। कहीं सड़कें टूट गई तो कहीं भवन के भवन ध्वस्त हो गए। बरसाती नदियों का पानी तटबंध तोड़कर बह चला।

और एक दिन फ्यूँली के गाँव पर भी कहर टूट पड़ा। रात भर से बारिश हो रही थी। सुबह थोड़ी देर के लिए मौसम खुला तो फ्यूँली दोनों बच्चों को स्कूल भेज स्वयं घर के काम में जुट गई। लेकिन थोड़ी ही देर बाद इतनी वर्षा आरंभ हो गई कि लगता था सब कुछ बहा ले जाएगी। गाँव का स्कूल जिसमें उस समय लगभग पचास बच्चे मौजूद थे, पिछली पहाड़ी दरक जाने से उसका मलबा स्कूल की दीवार तोड़कर अंदर से सबकुछ अपने साथ बहा ले गया।

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बड़े बच्चों ने तो किसी तरह निकल कर अपनी जान बचाई लेकिन छोटे बच्चे वहीं मलबे में दबे रह गए। बारह बजे करीब फ्यूँली को किसी ने आकर ये खबर दी। खबर सुन वह तो जैसे जड़ हो गई। उसके बच्चे तो अभी बहुत छोटे थे। भागकर बाहर भी न निकल पाए। फ्यूँली बदहवास हो उठी। उसी बदहवासी की हालत में स्कूल तक भागी लेकिन उसके जीवन की आखिरी लौ भी बुझ चुकी थी। फ्यूँली पत्थर हो गई। आँसू का एक कतरा भी उसकी आँखों से न निकला। मलबे में दबे उसके दोनों बच्चों के शव उसके सामने रखे गए लेकिन फ्यूँली पर कोई प्रतिक्रिया न हुई। वह तो सुन्न हो चुकी थी।

उसकी हालत देख माता-पिता उसे अपने साथ ले गए। लेकिन वह तो मानसिक संतुलन खो चुकी थी। सारे गाँव में ऐसे ही घूमती रहती। न कपड़ों की सुध न शरीर की।

जवान लड़की है, सुंदर है। कहीं इस दशा में इसके साथ कुछ बुरा हो गया तो। यही सोचकर माँ-बाप ने उसे मानसिक रोग चिकित्सालय में भर्ती करवा दिया।

तीन-चार बरस फ्यूँली वहीं रही। धीरे-धीरे उसे पिछली सब घटनाएँ याद आने लगी और उसका स्वास्थ्य सुधरने लगा। जिस दिन वह अपने दोनों बच्चों को याद कर फूट-फूट कर रोई उस दिन डॉक्टर को विश्वास हो गया कि फ्यूँली ठीक हो चुकी है।

लेकिन अब एक नई समस्या थी। फ्यूँली जाए कहाँ? उसके माता-पिता का भी अब पता न था कि वो कहाँ हैं। इकलौती बेटी के दुख से दुखी होकर उन्होंने गाँव छोड़ दिया था और अब उनका कुछ पता न था।

जिन लोगों के बच्चे उस हादसे में मारे गए थे उन्हें सरकार द्वारा सहायता दी गई जो अब तक फ्यूँली को न मिल पाई थी।

‘मुझे पैसा नहीं चाहिए साब। बच्चों के स्कूल में नौकरी दे दो। मेरी दो वक्त की रोटी भी चल जाएगी और स्कूल के बच्चों में अपने बच्चों को ढूँढ़ लूँगी।’ हाथ जोड़कर उसने अधिकारी के समक्ष अपनी बात रख दी।

उसकी परिस्थितियाँ देख उसकी बात मान ली गई और अंततः उसे इस स्कूल में आया की नौकरी मिल गई।

बस तब का दिन था और आज का दिन है। फ्यूँली इस स्कूल का अभिन्न अंग बन गई है अभिभावक हो या अध्यापक, कभी किसी को शिकायत का मौका नहीं दिया। स्कूल के सारे बच्चे उसके अपने हैं। कई अभिभावक तो उसके बारे में जानकर अपने छोटे बच्चों को स्कूल में छोड़कर जाते हैं।

रश्मि मंत्रमुग्ध हो फ्यूँली की कहानी सुन रही थी। एक ऐसी युवती की कहानी जिसने अपना सब कुछ खोकर इस पूरे संसार को पा लिया था।

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