बार-बार साकी जीवन में | कृष्ण कुमार
बार-बार साकी जीवन में | कृष्ण कुमार

बार-बार साकी जीवन में | कृष्ण कुमार

बार-बार साकी जीवन में | कृष्ण कुमार

बार-बार साकी जीवन में,
बोलो ऐसा क्यों होता है ?

सूरज के खिलने से पहले
बादल यूँ क्यों छा जाते हैं ?
कली चमन की फूल बनी कब
खिले फूल मुरझा जाते हैं ?
जीवन के नाटक में बोलो,
हँसता मानव क्यों रोता है ?

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जीवन की आपा-धापी में
कर्म-धर्म भूला करते हैं।
प्रश्न न खुद से पूछ सके हम
प्रश्नों से इतना डरते हैं।
पाप-पुण्य को गले लगा कर,
जीवन, जीवन भर सोता है।।

गलत सही का उचित व्याकरण
अब तुमको कैसे समझाऊँ ?
फूल, शूल बन क्यों चुभता है
क्या इसका इतिहास बताऊँ ?
सुख-दुख का अनुपात शून्य ही,
क्यूँ मन में काँटें बोता है ?

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