बादलों के टुकड़ों में उभरते चित्र | ए अरविंदाक्षन
बादलों के टुकड़ों में उभरते चित्र | ए अरविंदाक्षन

बादलों के टुकड़ों में उभरते चित्र | ए अरविंदाक्षन

बादलों के टुकड़ों में उभरते चित्र | ए अरविंदाक्षन

आसमान में बिखरे पड़े हैं
बादलों के टुकड़े अनगिनत
देखते रहो उन्हें
मूँदना नहीं आँखें
बादलों के टुकड़ों में कई चेहरे,
मायूस
हताश
उभर आएँगे।
उन्हें ध्यान से देखो
क्या उनकी आँखें में नमी है?
नहीं-नहीं,
बस, वीरान हैं वे आँखें
मरुथल की तरह मौन।
उन्हें ध्यान से देखो
क्या उनकी भाषा छीन ली गयी है?
हाँ, हाँ भाषा छीन ली गयी है और
उनकी हरियाली भी छीन ली गयी है
निहत्थे हो गये हैं वे
नंगे हो गये हैं वे
आत्महत्या के जंगल में छोड़ दिये गये हैं
क्या वे आत्महत्या करेंगे?
या फिर
खूँखार जानवरों के सामने खड़े हो जाएँगे?
कहा नहीं जा सकता
अब बादल बिखर चुके हैं।

Leave a comment

Leave a Reply