अपना गेहूँ | असलम हसन
अपना गेहूँ | असलम हसन
उधार का आटा आँचल में ले कर
घर लौटती है वह शाम को अक्सर
ठंडा चूल्हा पल भर जल कर
सो जाता फिर आँखें बंद कर
सूनी आँखों में सपना बुन कर
वह भी सोती है पहर भर
रात भर उन आँखों का सपना
सींचता रहता है गेहूँ अपना
अपना गेहूँ | असलम हसन
उधार का आटा आँचल में ले कर
घर लौटती है वह शाम को अक्सर
ठंडा चूल्हा पल भर जल कर
सो जाता फिर आँखें बंद कर
सूनी आँखों में सपना बुन कर
वह भी सोती है पहर भर
रात भर उन आँखों का सपना
सींचता रहता है गेहूँ अपना