अँखियाँ हरि-दरसन की भूखीं
अँखियाँ हरि-दरसन की भूखीं

अँखियाँ हरि-दरसन की भूखीं।
कैसैं रहत रूप-रस राँची, ये बतियाँ सुनि रूखीं।
अवधि गनत इकटक मग जोवत, तब इतनौं नहिं झूखीं।
अब यह जोग संदेसौ सुनि-सुनि, अति अकुलानी दूखीं।
बारक वह मुख आनि दिखावहु, दुहि पय पिवत पतूखी।
सूर, सु कत हठि नाव चलावत, ये सरिता हैं सूखी।।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *