अकेली स्त्री | मनीषा जैन अकेली स्त्री | मनीषा जैन दौड़ती है स्त्री तमाम उम्रअपने ऊपर आकाश का चँदोवासजाकर फिर भी न आसमान होता है उसकान जमीनआँखों में रहते हैं समंदर उसकेबाँहों में भरती है कायनात सारीफिर भी होती है स्त्री अकेली।