अग्नि परीक्षा | प्रतिभा गोटीवाले
अग्नि परीक्षा | प्रतिभा गोटीवाले

अग्नि परीक्षा | प्रतिभा गोटीवाले

अग्नि परीक्षा | प्रतिभा गोटीवाले

तुम ने कहा प्रेम 
और मैंने मान लिया 
तुमने कहा समर्पण 
मैंने वो भी मान लिया 
पर जब मैंने दोहराया प्रेम 
तुमने कहा साबित करो ? 
मैंने कहा समर्पण 
तुमने फिर कहा प्रमाण दो 
सहम गई थी मैं 
देह की गवाही 
बड़ी मुश्किल से 
प्रमाणित कर पाई थी 
कटघरे में खड़े 
मासूम मन की सच्चाई 
जाने क्यों होता आया है ऐसा 
की होठों से निकलते ही 
तुम्हारे शब्द बनते रहे 
पत्थर की लकीर 
और मेरे शब्द 
मेरे ही खिलाफ रचते रहे 
चक्रव्यूह 
मन उकसाता रहा 
शब्द होठों से झरते रहे 
और हमेशा अग्नि परीक्षा से 
गुजरती रही देह 
जानते हो मैंने बोलना 
कम कर दिया हैं 
शब्दों से डर लगने लगा है 
मुझे आजकल…।

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