पृथ्वी बुखार में जल रही थी और इस महान पृथ्वी के एक छोटे-से सिरे पर एक छोटी-सी कोठरी में लेटी थी वह
और उसकी साँस अब भी चल रही थी और साँस जब तक चलती है झूठ सच पृथ्वी तारे – सब चलते रहते हैं
डाक्टर वापस जा चुका था और हालाँकि वह वापस जा चुका था पर अभी सब को उम्मीद थी कि कहीं कुछ है जो बचा रह गया है नष्ट होने से जो बचा रह जाता है लोग उसी को कहते हैं जीवन कई बार उसी को काई घास या पत्थर भी कह देते हैं लोग लोग जो भी कहते हैं उसमें कुछ न कुछ जीवन हमेशा होता है
तो यह वही चीज थी यानी कि जीवन जिसे तड़पता हुआ छोड़कर चला गया था डाक्टर और वह अब भी थी और साँस ले रही थी उसी तरह
उसकी हर साँस हथौड़े की तरह गिर रही थी सारे सन्नाटे पर ठक-ठक बज रहा था सन्नाटा जिससे हिल उठता था दिया जो रखा था उसके सिरहाने
किसी ने उसकी देह छुई कहा – ‘अभी गर्म है’ लेकिन असल में देह याकि दिया कहाँ से आ रही थी जीने की आँच यह जाँचने का कोई उपाय नहीं था क्योंकि डाक्टर जा चुका था और अब खाली चारपाई पर सिर्फ एक लंबी और अकेली साँस थी जो उठ रही थी गिर रही थी गिर रही थी उठ रही थी…
इस तरह अड़ियल साँस को मैंने पहली बार देखा मृत्यु से खेलते और पंजा लड़ाते हुए तुच्छ असह्य गरिमामय साँस को मैंने पहली बार देखा इतने पास से
होंठ | केदारनाथ सिंह होंठ | केदारनाथ सिंह हर सुबहहोंठों को चाहिए कोई एक नामयानी एक खूब लाल और गाढ़ा-सा शहदजो सिर्फ मनुष्य की देह से टपकता है कई बारदेह से अलगजीना चाहते हैं होंठवे थरथराना-छटपटाना चाहते हैंदेह से अलगफिर यह जानकरकि यह संभव नहींवे पी लेते हैं अपना सारा गुस्साऔर गुनगुनाने लगते हैंअपनी जगह…
सृष्टि पर पहरा | केदारनाथ सिंह सृष्टि पर पहरा | केदारनाथ सिंह जड़ों की डगमग खड़ाऊँ पहनेवह सामने खड़ा थासिवान का प्रहरीजैसे मुक्तिबोध का ब्रह्मराक्षस -एक सूखता हुआ लंबा झरनाठ वृक्षजिसके शीर्ष पर हिल रहेतीन-चार पत्ते कितना भव्य थाएक सूखते हुए वृक्ष की फुनगी परमहज तीन-चार पत्तों का हिलना उस विकट सुखाड़ मेंसृष्टि पर पहरा…
सूर्यास्त के बाद एक अँधेरी बस्ती से गुजरते हुए | केदारनाथ सिंह सूर्यास्त के बाद एक अँधेरी बस्ती से गुजरते हुए | केदारनाथ सिंह भर लोदूध की धार कीधीमी-धीमी चोटेंदिये की लौ की पहली कँपकँपीआत्मा में भर लो भर लोएक झुकी हुई बूढ़ीनिगाह के सामनेमानस की पहली चौपाई का खुलनाऔर अंतिम दोहे कासुलगना भर लो…
सन ४७ को याद करते हुए | केदारनाथ सिंह सन ४७ को याद करते हुए | केदारनाथ सिंह तुम्हें नूर मियाँ की याद है केदारनाथ सिंहगेहुँए नूर मियाँठिगने नूर मियाँरामगढ़ बाजार से सुरमा बेच करसबसे आखिर मे लौटने वाले नूर मियाँक्या तुम्हें कुछ भी याद है केदारनाथ सिंहतुम्हें याद है मदरसाइमली का पेड़इमामबाड़ा तुम्हें याद…
सुई और तागे के बीच में | केदारनाथ सिंह सुई और तागे के बीच में | केदारनाथ सिंह माँ मेरे अकेलेपन के बारे में सोच रही हैपानी गिर नहीं रहापर गिर सकता है किसी भी समयमुझे बाहर जाना हैऔर माँ चुप है कि मुझे बाहर जाना है यह तय हैकि मैं बाहर जाऊँगा तो माँ…