आरी | नरेंद्र जैन
आरी | नरेंद्र जैन

आरी | नरेंद्र जैन

आरी | नरेंद्र जैन

कल 
लकड़ी आरी और 
हथौड़ा लेकर मैंने काम शुरू किया 
मेरे हाथों में आरी थी 
और मैं कुछ काम कर रहा था 
लकड़ी के एक बडौल टुकड़े को 
आरी ने काटा 
एक आकार में मैंने उन्हें जोड़ा 
कीलें सख्त थीं 
जैसे जोड़ रखा था कोलों ने 
दुनिया को 
खून उबल रहा था 
पसीना चुहचुहा आया था मेरे माथे 
मैंने जाना 
बढ़ई का काम 
कविता से ज्यादा कठिन है 
और मैं, 
उसका गुलाम हुआ

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