आँखों में रात ख्वाब का खंज़र उतर गया
आँखों में रात ख्वाब का खंज़र उतर गया

आँखों में रात ख्वाब का खंज़र उतर गया
यानी सहर से पहले चिराग़े-सहर गया

इस फ़िक्र में ही अपनी तो गुजरी तमाम उम्र
मैं उसकी था पसंद तो क्यों छोड़ के गया

आँसू मिरे तो मेरे ही दामन में आए थे
आकाश कैसे इतने सितारों से भर गया

कोई दुआ हमारी कभी तो कुबूल कर
वर्ना कहेंगे लोग दुआ से असर गया

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पिछले बरस हवेली हमारी खँडर हुई
बरसा जो अबके अब्र तो समझो खँडर गया

मैं पूछता हूँ तुझको ज़रूरत थी क्या ‘निजाम’
तू क्यूँ चिराग़ ले के अँधेरे के घर गया.

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