आलू | घनश्याम कुमार देवांश
आलू | घनश्याम कुमार देवांश
दिनदहाड़े वह मिट्टी की जेब से निकला
और सपनों के रास्ते मेरी नींद में चला आया
वह जिस रास्ते से गुजरता हुआ
मेरी नींद में पहुँच
वह यूरोप में औद्योगिक क्रांति का युग है
जिसे उसने भूख से अकेले बचा लिया था
जब मौत और मजदूर के बीच
वह अपनी अपार सेना के साथ
अकेला डट गया था
आज वह जमीन छोड़कर
सपने में चला आया है
और यह एक खतरनाक बात है