जलियाँवाला बाग में बसंत
जलियाँवाला बाग में बसंत

यहाँ कोकिला नहीं, काग हैं, शोर मचाते, 
काले काले कीट, भ्रमर का भ्रम उपजाते। 
कलियाँ भी अधखिली, मिली हैं कंटक-कुल से, 
वे पौधे, व पुष्प शुष्क हैं अथवा झुलसे। 
परिमल-हीन पराग दाग सा बना पड़ा है, 
हा! यह प्यारा बाग खून से सना पड़ा है। 
ओ, प्रिय ऋतुराज! किंतु धीरे से आना, 
यह है शोक-स्थान यहाँ मत शोर मचाना। 
वायु चले, पर मंद चाल से उसे चलाना, 
दुख की आहें संग उड़ा कर मत ले जाना। 
कोकिल गावें, किंतु राग रोने का गावें, 
भ्रमर करें गुंजार कष्ट की कथा सुनावें। 
लाना संग में पुष्प, न हों वे अधिक सजीले, 
तो सुगंध भी मंद, ओस से कुछ कुछ गीले। 
किंतु न तुम उपहार भाव आ कर दिखलाना, 
स्मृति में पूजा हेतु यहाँ थोड़े बिखराना। 
कोमल बालक मरे यहाँ गोली खा कर, 
कलियाँ उनके लिए गिराना थोड़ी ला कर। 
आशाओं से भरे हृदय भी छिन्न हुए हैं, 
अपने प्रिय परिवार देश से भिन्न हुए हैं। 
कुछ कलियाँ अधखिली यहाँ इसलिए चढ़ाना, 
कर के उनकी याद अश्रु के ओस बहाना। 
तड़प तड़प कर वृद्ध मरे हैं गोली खा कर, 
शुष्क पुष्प कुछ वहाँ गिरा देना तुम जा कर। 
यह सब करना, किंतु यहाँ मत शोर मचाना, 
यह है शोक-स्थान बहुत धीरे से आना।

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