इनको ही रो-धोकर
गाकर आँखें भर लो
चिंताओं को
जेब-खर्च में शामिल कर लो।
लगा हुआ है
नई हवा का आना-जाना
इसकी खातिर
दिल है एक मुसाफिर खाना
जितने पल का साथ
उसी की हामी भर लो।
जैसे जमकर बर्फ गिरी हो
ऐसी बातें
ऐसी सरदी काँप गई हैं
अपनी रातें
रगड़ हथेली कुछ तो गर्मी
पैदा कर लो।
सोचो तो ये खुशियों की
तौहीनी ही है
इतने अरसे बाद यहाँ
गमगीनी ही है
पतझर या मधुमास
किसी पत्ते-सा झर लो।