मैं बेटी इंद्रावती की
हँसती खेलती बहती रही
उसके साथ साथ
सल्फी मड़िया और
महुआ संग झूमती
गाती मदमाती पर
मेरे थिरकते कदमों को
लग गई है नज़र
टोना और धूर बान से भी
गहरी और मारक नजर
अब फुरसत ही कहाँ

कि हम थिरकें
मादल की थाप पर
बचपन का पढ़ा पाठ भी
अब आता नहीं काम
ध से धनुष और
त से तराजू
दोनों ही हो चुके हैं
बिलकुल ही अर्थहीन
टूट गई है कमान
धनुष की
पासंग हो गए है
तराजू के पड़ले
हाथों में बंदूक थामे
खड़ी हूँ मैं
आज फिर वहीं
मगर अब मैं
बहती नहीं
उसके साथ
भाग रही हूँ दूर
अपने आप से
लगातार लगातार लगातार

READ  कठघोड़वा नाच | आरसी चौहान

Leave a comment

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *