स्वर | त्रिलोचन
स्वर | त्रिलोचन

स्वर व्यतीत कदापि नहीं हुए
समय-तार बजा कर जो जगे,
रँग गई धरती अनुराग से,
गगन में नवगुंजन छा गया।

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